विदेश मंत्री जयशंकर ने बताया अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद भारत की क्या नीति रहेगी

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद पाकिस्तान-चीन गठबंधन के सामने भारत अलग-थलग दिखाई दे रहा है। लेकिन एक्सपर्ट्स मानते हैं कि अफगानिस्तान में अफगान लोग भारत के बहुत मजबूत सहयोगी हैं। और अफगानिस्तान में बने इस विश्वसनीयता को भारत छोड़ना नहीं चाहता है। भारतीय विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर ने इसी बात के संकेत दिए हैं।

हाल ही में अफगानिस्तान में तालिबान के सरकार से भारत के जुड़ने को लेकर जयशंकर ने कहा था कि भारत का अफगान लोगों के साथ ऐतिहासिक संबंध रहा है। यह संबंध जारी रहेगा और अफगानिस्तान के प्रति हमारे दृष्टिकोण का मार्गदर्शन करेगा। एक्सपर्ट्स विदेश मंत्री के इस बयान के कई मायने निकाल रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र में भारतीय स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने सुरक्षा परिषद में अफगानिस्तान पर चर्चा के दौरान कहा था कि अफगानिस्तान को लेकर भारत कि चिंता नजदीकी पड़ोसी और वहां के लोगों को लेकर है।

तालिबान हरेक अफगान की बात नहीं रखता

यह साफ़ है कि भारत अफगान लोगों और तालिबान को अलग-अलग चश्मे से देख रहा है। दुनिया इस बात को मानती है कि तालिबान ने हथियार के दम पर सत्ता पर कब्जा कर लिया है और भारत का नजरिया भी यही है। यह एक सच्चाई है कि तालिबान हरेक अफगान लोगों की बात नहीं रखता। शायद सारे पश्तूनों की बात भी नहीं रखता जो कि अन्य अफगान समुदाय पर हावी रहे हैं। उदाहरण के लिए हामिद करजई और अशरफ गनी जैसे नेता पश्तून समुदाय से आते हैं।

अफगानिस्तान भारत के लिए निवेश नहीं है

भारत पिछले 20 साल से अफगानिस्तान के विकास में योगदान दे रहा है और अफगान जनता इस बात को जानती है और यह दोनों देशों के बीच संबंधों की मजबूती का सबूत है। भारत ने 2001 के बाद से अब तक अफगानिस्तान में 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक खर्च किए हैं। भारत ने अफगानिस्तान का नया संसद बनाया। कई नए हॉस्पिटल बनाए और कई हॉस्पिटल का पुनर्निर्माण किया। कई स्कूलों की मरम्मत की। सलमा डैम बिजली उत्पादन प्रोजेक्ट को पूरा किया। 218 किलोमीटर जरंज-डेलाराम राजमार्ग और ट्रांसमिशन लाइन्स का निर्माण किया है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट से लेकर बैंकों और एयरलाइन्स की मदद की है। पिछले 20 सालों में अफगानिस्तान में सेवा करते हुए कम से कम 20 भारतीय राजनयिक, डॉक्टर, इंजीनियर और सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं।

 

जैसा की विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा है कि अफगानिस्तान भारत के लिए निवेश नहीं है। यह एक रिश्ता है जो हमें बांधता है। 2001 में तालिबान शासन के पतन के बाद पहले भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए विशेष दूत सतीश लांबा 21 नवंबर, 2001 को काबुल पहुंचे थे। सैन्य विमान में मनोरंजन के भूखे अफगान लोगों के लिए एक विशेष उपहार से भरा एक कंटेनर था। साल की सबसे बड़ी बॉलीवुड हिट, लगान की डीवीडी थी। इससे पता चलता है कि भारत और अफगानिस्तान के बीच कैसे संबंध हैं।

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