म्यांमा में मुस्लिम रोहिंग्या का दमन ‘नरसंहार’ है : अमेरिका
वाशिंगटन, 22 मार्च। अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा है कि म्यांमा में मुस्लिम रोहिंग्या आबादी का हिंसक दमन ‘नरसंहार’ के समान है। ब्लिंकन ने सोमवार को ‘यूएस होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूजियम’ में अपने संबोधन में कहा कि अधिकारियों ने म्यांमा की सेना द्वारा जातीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ व्यापक और चरणबद्ध अभियान के तहत आम नागरिकों पर बड़े पैमाने पर अत्याचार के पुष्ट आंकड़ों के आधार पर इसे ‘नरसंहार’ बताया है।
विदेश मंत्री ने यूक्रेन सहित दुनिया में कहीं और भीषण हमले की स्थिति में अमानवीयता पर ध्यान देने के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, ‘‘हां, हम यूक्रेन के लोगों के साथ खड़े हैं और हमें उन लोगों के साथ भी खड़ा होना चाहिए जो अन्य जगहों पर अत्याचार झेल रहे हैं।’’
फरवरी 2021 में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार के सैन्य तख्तापलट के बाद से म्यांमा की सरकार अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना कर रही है। पूरे देश में हजारों आम नागरिक मारे गए हैं और सत्तारूढ़ सैन्य सरकार का विरोध करने वालों को जेल में जेल में डाला जा रहा है।
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने कहा कि ब्लिंकन की घोषणा ‘‘विशेष रूप से पीड़ितों और हमले से बचे लोगों पर जोर देती है कि अमेरिका इन अपराधों की गंभीरता को जानता है। हमारा विचार है कि म्यांमा की सेना के अपराधों पर प्रकाश डालने से अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ेगा, उनके लिए और अधिक दुर्व्यवहार करना कठिन हो जाएगा।’’
अगस्त 2017 से 700,000 से अधिक रोहिंग्या मुस्लिम बौद्ध-बहुल म्यांमा से बांग्लादेश में शरणार्थी शिविरों में पलायन कर गए हैं, जब सेना ने एक विद्रोही समूह के हमलों के बाद उन्हें देश से निकालने के उद्देश्य से एक अभियान शुरू किया था। मानवाधिकार संगठनों ने भी इसका स्वागत किया। विदेश विभाग की 2018 की एक रिपोर्ट में म्यांमा की सेना द्वारा गांवों को तबाह करने और 2016 के बाद से नागरिकों से बलात्कार, यातना और सामूहिक हत्याओं को अंजाम देने के उदाहरणों को शामिल किया गया है।
इधर, बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थियों ने म्यांमा में बड़े पैमाने पर मुस्लिम जातीय समूह के हिंसक दमन को ‘नरसंहार’ मानने संबंधी अमेरिकी घोषणा का सोमवार को स्वागत किया है। कुटुपलोंग शिविर में रह रहीं 60 वर्षीय सालाउद्दीन ने कहा, ‘‘हम इसे ‘नरसंहार’ घोषित किए जाने की बात से बेहद खुश हैं। बहुत बहुत धन्यवाद।’’ ढाका विश्वविद्यालय में नरसंहार अध्ययन केंद्र के निदेशक इम्तियाज अहमद ने कहा कि घोषणा ‘‘एक सकारात्मक कदम’’ है, लेकिन यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या कार्रवाई और ‘‘ठोस कदम’’ का पालन किया जाता है या नहीं। अहमद ने कहा, ‘‘सिर्फ यह कहकर कि म्यांमा में रोहिंग्याओं के खिलाफ नरसंहार किया गया था, काफी नहीं है। मुझे लगता है कि हमें यह देखने की जरूरत है कि इस बयान से क्या निकलता है।’’