प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को दिल्ली के मेजर ध्यानचंद राष्ट्रीय स्टेडियम में आदि महोत्सव का उद्घाटन किया. 12 दिनों तक चलने वाले इस महोत्सव में जनजातीय संस्कृति, शिल्प, खान-पान, वाणिज्य और पारंपरिक कला को प्रदर्शित किया गया है. आदि महोत्सव जनजातीय उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में पहुंचाने का एक मंच है. आदि महोत्सव में जनजातीय हस्तशिल्प, हथकरघा, चित्रकारी, आभूषण, बेंत और बांस, मिट्टी के बर्तन, भोजन और प्राकृतिक उत्पाद, उपहार ,जनजातीय व्यंजन की प्रदर्शनी और स्टॉल लगाए गए है।
इस मौके पर पीएम ने आदिवासी समाज के लिए केंद्र सरकार की तरफ से लिए गए फैसलों को गिनाया और आदिवासी समुदाय से अपने व्यक्तिगत भावनात्मक रिश्ते की याद दिलाकर आदिवासी समुदाय को रिझाने की कोशिश की. जाहिर तौर पर मोदी सरकार की नजर आदिवासी वोटरों पर है, जिनकी इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में निर्णायक भूमिका होगी।
इसी वजह से जहां एक तरफ आज त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग हो रही है तो वहीं दिल्ली में पीएम का स्वागत त्रिपुरा की पारंपरिक पगड़ी पहनाकर अर्जुन मुंडा ने किया. पीएम ने सरकार के काम गिनाते हुए कहा कि आज सरकार आदिवासियों के दरवाजे पर जा रही है और दूर-सुदूर रहने वालों को मुख्यधारा में ला रही है. पीएम ने अपने स्पीच में आदिवासी समुदाय से अपने व्यक्तिगत और भावनात्मक कनेक्ट की बात की।
पीएम ने आदिवासी समाज के साथ बिताए अपने दिनों को भी याद किया और कहा कि उन्होंने खुद आदिवासी समाज से बहुत कुछ सीखा है. उन्होंने कहा, ‘मैंने देश के कोने कोने में आदिवासी समाज और परिवार के साथ अनेक सप्ताह बिताए हैं. मैंने आपकी परंपराओं को करीब से देखा भी है, उनसे सीखा भी है और उनको जिया भी है. आदिवासियों की जीवनशैली ने मुझे देश की विरासत और परंपराओं के बारे में बहुत कुछ सिखाया है. आपके बीच आकर मुझमें अपनों से जुड़ने का भाव आता है।
देश में साढ़े 10 करोड़ के करीब आदिवासी समुदाय
2019 के लोकसभा चुनाव में आदिवासी वोटरों ने दिल खोलकर पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर बीजेपी को वोट दिया था. पूरे देश में साढ़े दस करोड़ के करीब आदिवासी समुदाय है और आदिवासी वोटर 8.9 फीसदी के लगभग हैं. ऐसे में लोकसभा की कुल 543 सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. आदिवासी वोटरों का पीएम मोदी पर भरोसा ही है, जिसके चलते 2019 के लोकसभा चुनाव में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 सीटों में 31 पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी।
केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि जिस तरह से गुजरात में आदिवासियों ने पीएम और बीजेपी का समर्थन किया वैसे ही 2024 मे एक बार फिर आदिवासी समाज नरेंद्र मोदी को पीएम की कुर्सी पर बिठाएगा. इसके साथ ही त्रिपुरा में आज वोटिंग हो रही है और 7 राज्यों के चुनाव होने हैं, जिसमें आदिवासी वोटरों की भूमिका अच्छी खासी सीटों पर निर्णायक होती है. यही वजह है कि सरकार की नजर उन आदिवासी वोटरों को करीब लाने की ह।
मध्य प्रदेश में 47 सीटें आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित
मध्य प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें ST के लिए रिजर्व हैं. चूंकि मध्य प्रदेश में ST सीटों का हिस्सा 20.4% है, लिहाजा कुल विधानसभा सीटों का पांचवां हिस्सा रखने वाली इन ST सीटों की ताकत से ही मध्यप्रदेश में चुनावी हार-जीत का फैसला होता है. उसी तरह राजस्थान की कुल 200 विधानसभा सीटों में से 25 सीटें ST के लिए रिजर्व हैं. राजस्थान में ST के लिए रिजर्व 25 में से 8 सीटें ही बीजेपी के पास हैं. राज्य में ST सीटों की हिस्सेदारी करीब 12.15% है और जो पार्टी इन सीटों पर बढ़िया चुनावी प्रदर्शन करती हैं सरकार उसी की बननी तय मानी जाती है।
मध्य प्रदेश में भी आदिवासियों की जनसंख्या 2 करोड़ से अधिक है. यही वजह है कि आदिवासी प्रभाव वाली सीटें सरकार की जीत हार का फैसला करती हैं. मध्य प्रदेश में विधानसभा की 230 सीट में से 47 सीटें आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित हैं. इसके अलावा भी कई सीटों पर आदिवासी वोटरों का अच्छा खासा दखल है जो जीत हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं. मध्यप्रदेश में ST के लिए रिजर्व 47 सीटों में से सिर्फ 16 सीट बीजेपी के पास हैं. यही वजह है कि बीजेपी ST वोटरों के बीच अपनी पैठ बढ़ाने मे लगी है।
छत्तीसगढ़ में 29 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व
छत्तीसगढ़ विधानसभा की तो एक तिहाई सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व है. अभी छत्तीसगढ़ के 90 सदस्यीय विधानसभा में 29 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं, जिसमें से 27 पर कांग्रेस और 2 पर बीजेपी का कब्जा है. ऐसे में इस साल के चुनाव में छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सत्ता वापसी का दारोमदार इन्ही आदिवासियों समुदाय के वोटरों के मूड पर निर्भर करता है।
कर्नाटक में 15 सीटें रिजर्व
कर्नाटक में आदिवासी समाज 7 फीसदी के करीब है और 15 सीटें उनके लिए आरक्षित हैं. इसके अलावा लगभग 20 विधानसभा क्षेत्रों में भी आदिवासी वोटरों की अच्छी खासी मौजूदगी है. ये वोटर कर्नाटक की सत्ता तक पहुंचने के लिए एक अहम सीढ़ी माने जाते हैं।
तेलंगाना में अनुसूचित जनजाति के लिए 12 सीटें रिजर्व
तेलंगाना की 119 विधानसभा क्षेत्रों में से अनुसूचित जनजाति के लिए 12 सीटें रिजर्व हैं. 2018 के चुनाव में में टीआरएस ने छह ST सीटों पर जीत हासिल की थी. हालांकि इसके बाद, अन्य दलों के चार अनुसूचित जनजाति के विधायक भी टीआरएस में शामिल हो गए, जिससे उसे विधानसभा में 10 अनुसूचित जनजाति की सीटें मिलीं. कड़ा और करीबी मुकाबला होने पर ये आदिवासी वोटर तेलंगाना की जीत हार तय करेंगें।
मिजोरम में 39 सीटें एसटी के लिए आरक्षित
मिजोरम की बात करें तो वहां एक सीट छोड़कर 40 सीटों में से 39 सीटें एसटी के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं. यानि जिसकी तरफ आदिवासी वोटर जाएंगें सरकार उसी की बनेगी।