भारतीय हॉकी टीम का अच्छा समय नहीं चल रहा है. टोक्यो ओलिंपिक में मेडल जीतने के बाद हॉकी टीम से जो उम्मीदें बढ़ी थीं वो वर्ल्ड कप में फिर गर्द में चली गई. सिर्फ हॉकी खेल ही नहीं बल्कि इस खेल से जुड़े खिलाड़ियों की भी हालत भी अच्छी नहीं है. ऐसे ही एक हॉकी खिलाड़ी है टेकचंद जो एक समय पर भारत के धुरंधर फॉरवर्ड हुआ करते थे लेकिन अब वो झोपड़ी में जिंदगी बिताने को मजबूर है. उनकी हालत बताती है कि देश में खिलाड़ियों को अब भी वो सम्मान नहीं मिल रहा जिसके वो हकदार हैं।
टेकचंद भारतीय टीम के लिए खेल चुके हैं. उन्होंने देश को यादगार जीत दिलाई हैं. भारत के महान हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद से भी उनका गहरा नाता था. टेकचंद ने इस खेल को बहुत कुछ दिया लेकिन गरीबी ने उनसे उनका सबकुछ छीन लिया. वो अपनी पहचान भी खो चुके हैं।
ध्यानंचद ने बनाया हॉकी खिलाड़ी
टेकचंद मध्यप्रदेश के सागर के रहने वाले हैं. यहीं पर एक हॉकी क्लब था जहां एक बार ध्यानचंद ट्रेनिंग देने आए थे. उन्होंने आसपास के खिलाड़ियों को टेस्ट देने के लिए बुलाया. वो टेकचंद से काफी प्रभावित हुए थे. उन्होंने तीन महीने तक टेकचंद और बाकी खिलाड़ियों को टिप्स दिए और यहीं से इस खिलाड़ी का जीवन बदल गया. ध्यानचंद के टिप्स और उनकी मेहनत ने उन्हें टीम चेकचंद को टीम इंडिया में जगह दिला दी. उन्होंने यहां दे को कई जीत दिलाईं. हालांकि परिवार की जिम्मेदारी उठाने के दबाव के कारण उनका खेल से नाता टूट गया. हॉकी के छूटते ही उनकी जिंदगी भी बदल गई।
गरीबी ने छीन लिया सबकुछ
ध्यानचंद ने गरीबी के कारण अपने परिवार को खो दिया. पहले उनकी 8 महीने बेटी की मौत हुई और फिर उनकी पत्नी टीबी के कारण परिवार को खोने के बाद उनकी हालत और खराब हो गई. आज के समय में हालात इतने बिगड़े हुए हैं कि वो एक झोपड़ पट्टी में रहते हैं. उनके पास सोने के लिए बिस्तर नहीं है. घर की टपकती छत से आते पानी ने उनके सारे सर्टिफिकेट सारी ट्रॉफी खराब कर दी. उनके पास खाने के लिए भी पैसे नहीं है. सागर के ही एक रेस्त्रां ने उनके खाने का खर्च उठाया हुआ है जो उन्हें दो समय का खाना देता है. सरकार की तरफ से उन्हें हर महीने केवल 600 रुपए दिए जाते हैं जिसमें 30 दिन का खर्चा चलाना एक चुनौती है. टेकचंद को अपनी हालत पर तरस नहीं आता लेकिन वो भारतीय हॉकी की हालत देखकर निराशा महसूस करते हैं।