रोमानिया के तेजी से विकसित हो रहे शहर क्लुज-नेपोका में रहने वाले रोमा समुदाय के लोगों का कहना है कि स्थानीय अधिकारी उनके साथ मानव कचरे की तरह व्यवहार करते हैं.क्लुज-नेपोका, रोमानिया के सबसे तेजी से विकसित हो रहे शहरों में से एक है. इस शहर के बाहरी इलाके में हवाई अड्डे में बगल में कचरे का विशाल ढेर है. इस कचरे के ढेर कर कई घर बसे हुए हैं. घोड़े से खींची जाने वाली गाड़ियां शहर की ओर लौटने वाले खाली कचरा ट्रकों के साथ रास्ते को पार करती हैं. बच्चे नंगे पांव लकड़ी के बने अस्थायी घरों के बीच दौड़ते हैं और कौवे कचरे के ढेर के उपर चक्कर लगाते हैं. यह पाटा रैट है, जो देश का सबसे बड़ा लैंडफिल है. दशकों से यहां कचरा जमा किया जा रहा था. कचरे में अक्सर लगने वाली आग से जो प्रदूषण फैलता है, वह कभी-कभी यहां मौजूद लकड़ी के घरों में रहने वाले लोगों की जान ले लेता है. यूरोपीय संघ के दबाव में, शहर ने 2015 में इस जगह पर कचरा जमा करने पर रोक लगाने का काम शुरू किया. हालांकि, 70 वर्षों में फुटबॉल के 27 मैदानों के बराबर जगह में यहां 2.5 मिलियन मीट्रिक टन कचरा जमा हो चुका था. स्थानीय प्रशासन ने इस कचरे के निपटारे का काम शुरू किया. आखिरकार 2019 के अंत में स्थानीय अधिकारियों ने पाटा रैट को ‘इतिहास’ घोषित कर दिया. इसके बावजूद, यहां रहने वाले 1,500 रोमा लोगों के लिए पाटा रैट अभी भी मौजूद है. उनका कहना है कि अभी भी वे इस पर्यावरणीय संकट से उबरे नहीं हैं. 2015 में पुराने लैंडफिल के बगल में कचरे को रखने के लिए दो अस्थाई जगह बनाई गई थी और वहां कचरे का ढेर लगातार बढ़ रहा है. साथ ही, विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि पुराने कचरे का निपटारा भी ठीक से नहीं किया गया. नोडिज कहते हैं, “यह एक इकोलॉजिकल लैंडफिल नहीं था. इसे यूरोपीय मानकों के अनुरूप नहीं बनाया गया था. सभी जहरीले पदार्थ मिट्टी और भूजल में मिल गए. इस क्षेत्र में सब कुछ प्रदूषित हो गया है” पाटा रैट में रहने वाले रोमा समुदाय के लोग 1960 के दशक के अंत में और 1970 के दशक की शुरुआत में यहां रहने आए थे. ये लोग गरीबी की वजह से यहां आए थे और कुछ लोगों ने लैंडफिल में कचरा बीनने का काम शुरू कर दिया.
2000 के दशक में जब क्लुज-नेपोका में रियल एस्टेस की कीमतों में उछाल हुई, जमीन और मकान की कीमतें तेजी से बढ़ीं, तब एक बड़ी आबादी को शहर से बेदखल कर दिया गया और वे यहां रहने लगे. शहर से कचरे के ढेर पर पहुंचाया गया आखिरी बार 2010 में, स्थानीय अधिकारियों ने बीच शहर में मौजूद कोस्टेई स्ट्रीट में रहने वाले करीब 350 लोगों को वहां से हटाकर पाटा रैट पहुंचा दिया था. लिंडा ग्रेटा जिसिगा को दिसंबर की वह सर्द सुबह याद है. उस दिन पुलिस, स्थानीय अधिकारी और बुलडोजर की आवाज ने उन्हें और उनके परिवार को जगाया. इसके ठीक दो दिन पहले, उन्हें और स्ट्रीट में रहने वाले 75 अन्य रोमा परिवारों को यह जगह खाली करने की चेतावनी दी गई थी. अब उनका ठिकाना पाटा रैट में पहले से मौजूद शिविरों के बीच स्थित एक छोटा घर था. जिसिगा का कहना है कि कोस्टेई स्ट्रीट में रोमा समुदाय पूरी तरह से बसे हुए थे. वे वहां पीढ़ियों से रह रहे थे. उन्होंने वहां मिले सरकारी घर और सुविधाओं के लिए पैसे चुकाए. उनके बच्चे स्थानीय स्कूलों और किंडरगार्टन में गए. इसके बावजूद, उन्हें शहर के कूड़े के ढेर पर फेंका जा रहा था. वह कहती हैं, “वे हमें कचरा मानते थे, इंसान नहीं. उन्होंने सोचा कि हम उस कचरे के ढेर पर ही रहने लायक हैं” भेदभाव झेल रहे रोमा पिछले साल एक सर्वेक्षण के जवाब में, 10 में से 7 रोमानियाई लोगों ने कहा कि उन्हें रोमा पर भरोसा नहीं है. सर्वे में शामिल 20% से 30% लोगों ने कहा कि रोमा के खिलाफ हिंसा करने की अनुमति दी जानी चाहिए या रोमा के खिलाफ भेदभाव और अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने वाले सजा नहीं दिया जाना चाहिए. रोमानिया के लिए इस तरह के दृष्टिकोण अलग नहीं है. पूरे यूरोप में, सबसे बड़े जातीय अल्पसंख्यक के खिलाफ नस्लवाद का नतीजा है कि रोमा लोगों को बुनियादी अधिकार नहीं मिल रहे हैं. उन्हें रोजगार और सार्वजनिक सेवाओं के इस्तेमाल से वंचित किया जाता है. हाशिए पर खड़े रोमा समुदाय के लोगों को उन जगहों पर भेज दिया जाता है जहां न तो पीने को साफ पानी मिलता है और न ही साफ-सफाई रहती है. साथ ही, कचरों का ढेर मौजूद होता है. अक्सर ये जगह काफी खतरनाक होते हैं. पिछले साल यूरोपीय पर्यावरण ब्यूरो (ईईबी) ने “मध्य और पूर्वी यूरोप में रोमा समुदायों के खिलाफ पर्यावरण नस्लवाद” पर प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि रोमा लोग “लैंडफिल या गंदे उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषण से बुरी तरह प्रभावित थे” तेजी से बीमार हो रहे रोमा पाटा रैट पहुंचने पर, 12 सदस्यों वाले जिसिगा के परिवार को 16 वर्ग मीटर का कमरा रहने को मिला. यह जगह परिवार के हिसाब से इतनी कम थी कि ज्यादातर सामान बाहर रखने पड़े.
यहां इसी तरह के तीन अन्य परिवारों के लिए एक शौचालय था और बाथरूम था. सभी को इसी से काम चलाना था. जिसिगा उस पल को याद करते हुए बताती हैं कि वह अपनी खिड़की से चारों ओर फैले कचरे के समुद्र को देख रही थीं. वह कहती हैं, “मुझे प्रकृति से प्रेम है, लेकिन वहां एक भी कबूतर नहीं था और न ही पेड़ थे” संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की 2012 की एक रिपोर्ट में पाया गया कि वहां रहने वाले 22% वयस्क पुरानी बीमारी या किसी न किसी प्रकार की विकलांगता से पीड़ित हैं. शोधकर्ताओं ने त्वचा संक्रमण, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, उच्च रक्तचाप, और हृदय और पेट की समस्याओं का विवरण तैयार किया. इसके अलावा, यूरोपीय रोमा राइट्स सेंटर की एक रिपोर्ट में पाया गया कि शहर से निकाले जाने के दो वर्षों में, कोस्टेई समुदाय के बीच स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं दोगुनी हो गईं. ईईबी के अध्ययन में बताया गया कि रोमा के खिलाफ पर्यावरणीय नस्लवाद के प्रमुख कारकों में से एक उन्हें “महंगी जगहों” से जबरन बेदखल करना है. कोस्टेई समुदाय को उन्हें उनके पुराने जगह से बेदखल करने का कारण नहीं बताया गया. हालांकि, जिसिगा को पता है कि उन्हें क्यों हटाया गया. वह कहती हैं, “वे क्लुज से रोमा को ‘साफ’ करना चाहते थे. अब बहुत ही कम रोमा शहर में शहर में रहते हैं” क्लुज-नेपोका की नगर पालिका ने डीडब्ल्यू को बताया कि वे पाटा रैट की सफाई कर रहे हैं. साथ ही, समुदाय को स्वास्थ्य और अन्य सेवाएं उपलब्ध करा रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि वे जबरन बेदखल करने को रोकने की कोशिश कर रहे हैं. 30 परिवारों के लिए घर उपलब्ध कराने के लिए एक कार्यक्रम में भागीदार हैं, हालांकि वे इस योजना के लिए धन उपलब्ध नहीं करा रहे हैं. कचरा बीनने वालों का कारोबार ठप्प लैंडफिल कवर होने के बाद से पाटा रैट इलाके में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य को लेकर कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. हालांकि, इस इलाके में काम कर रहे एक एनजीओ के कार्यकर्ता के मुताबिक, बच्चों में सांस की बीमारियां आम बात है. लैंडफिल के बंद होने के बाद से, पाटा रैट में जीवन जीना और भी कठिन हो गया है. कचरा बीनने वालों का काम ठप्प हो गया है. चार बच्चों की मां 28 वर्षीय एडेला लुडविग लैंडफिल के पास रहती हैं. उनका घर प्लाईवुड से बना है. छत के नाम पर विज्ञापन का बैनर है. यह बैनर उन्हें कचरे के ढेर पर मिला था. लुडविग इस घर को ही अपना ‘विला’ मानती हैं.
रसायनिक कचरे के ढेर पर बना यह ‘विला’ कंटीले तारों से घिरा हुआ और नीले प्लास्टिक की पन्नी से ढका हुआ है. लुडविग प्लास्टिक की बोतलें और पन्नी, डिब्बे और कार्डबोर्ड इकट्ठा करती थीं. वह कहती हैं कि स्थानीय रीसाइक्लिंग कंपनी एक किलो प्लास्टिक के लिए 12 सेंट के बराबर भुगतान करती थी. ऐसे में वह एक दिन में करीब 40 यूरो तक कमा लेती थीं. वह कहती हैं, “इन पैसों से मैं खाना खरीदती थी और जरूरत पड़ने पर बच्चों के लिए दवा खरीदती थी” अब नए ‘अस्थायी’ लैंडफिल बंद कर दिए गए हैं. इसकी वजह से लुडविग जैसे कचरा बीनने वालों का काम ठप्प हो गया है. वह कहती हैं, “लोग भूख से रो रहे थे” लुडविग को पांचवां बच्चा होने वाला है. उन्हें हर महीने बच्चे के नाम पर 220 यूरो मिलते हैं. इसी के सहारे वह अपने चार बच्चों के साथ जीवन-यापन कर रही हैं. अपनी बेहतरी के लिए खुद कर रहे संघर्ष लैंडफिल के ‘इतिहास’ घोषित होने के एक साल बाद, क्लुज-नेपोका के प्रमुख ने वादा किया था कि पाटा रैट में मौजूद कैंप “2030 तक हटा दिए जाएंगे” लेकिन यह नहीं बताया गया कि वहां रहने वाले 350 परिवार के लोग कहां जाएंगे. हालांकि, उनकी घोषणा से ठीक पहले, यहां के निवासियों ने इस मामले को अपने हाथों में ले लिया था. अपनी समस्या खुद से दूर करने में जुट गए. 2012 में, जिसिगा और कोस्टेई कैंप के अन्य लोगों ने एक संगठन बनाया. यह संगठन पाटा रैट में रहने वाले लोगों को घर दिलाने के लिए अभियान चलाने और बेदखली के खिलाफ अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिए गैर-सरकारी संगठनों के साथ काम कर रहा है. फिलहाल वे, यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय से अपने मामले पर निर्णय का इंतजार रहे हैं. वहीं, नॉर्वे ग्रांट्स की पहल से कोस्टेई के 35 परिवारों को 2014 और 2017 के बीच क्लुज-नेपोका या आसपास के गांवों में बसाया गया. नॉर्वे ग्रांट्स के जरिए नॉर्वे सरकार दक्षिणी और पूर्वी यूरोप में सामाजिक परियोजनाओं के लिए फंड मुहैया कराती है. अब जिसिगा, अपने पार्टनर और तीन बच्चों के साथ शहर में तीन कमरों वाले अपार्टमेंट में रहती हैं, लेकिन उन्होंने पाटा रैट से मुंह नहीं मोड़ा है. उनके भाई-बहन और परिवार के सदस्य अभी भी वहीं रहते हैं. वह नॉर्वे ग्रांट के दूसरे चरण में 30 परिवारों को सहायता दिलाने के लिए साइट पर काम कर रही हैं. वह कहती हैं, “मैं चाहती हूं कि कोई भी पाटा रैट में न रहे. वह जगह किसी के रहने लायक नहीं है”