चीन भले ही को आगे बढ़कर अपना समर्थन दे रहा है, लेकिन यही उसके लिए मुसीबत का सबब बन सकता है। अफगानिस्तान में इन दिनों इस्लामिक स्टेट खोरासान सक्रिय है और यह खूंखार आतंकी संगठन तालिबान के खिलाफ है। इसके अलावा चीन के शिनजियांग प्रांत में एक्टिव ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट के लड़ाके भी तालिबान के साथ आकर मिल सकते हैं। ये लड़ाके लंबे समय से शिनजियांग के उइगुर मुस्लिमों को आजाद कराने के लिए लड़ते रहे हैं। ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट के लड़ाके बड़ी संख्या में अफगानिस्तान के बदख्शन प्रांत में भी बसे हुए हैं। यह इलाका उत्तरी अफगानिस्तान में है, जो चीन के शिनजियांग को वखान कॉरिडोर के जरिए जोड़ता है।
अब तक तालिबान के इन लड़ाकों से अच्छे रिलेशन रहे हैं। तालिबान में ज्यादातर संख्या पश्तून लड़ाकों की है, जो दक्षिणी हिस्से में रहते हैं। इसके अलावा उत्तर क्षेत्र में अल्पसंख्यक ताजिक, उज्बेक, हजारा, उइगुर और चेचेन मूल के लोगों की अच्छी खासी आबादी है। तालिबान के राज में शिया हजारा समेत इन लड़ाकों पर अत्याचार बढ़ सकते हैं। ऐसे में इन गैर-पश्तून समुदायों के लड़ाके इस्लामिक स्टेट के साथ जा सकते हैं, जो तालिबान के खिलाफ है। इसके अलावा चीन से तालिबान की दोस्ती से ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) का रुख बदल सकता है और वह भी इस्लामिक स्टेट के पाले में जा सकता है।
क्यों चीन के खिलाफ एकजुट होंगे ETIM और इस्लामिक स्टेट
इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स के मुताबिक ETIM ग्रुप इस्लामिक स्टेट खुरासान से हाथ मिला सकता है। दरअसल ETIM के लड़ाकों को आशंका है कि तालिबान चीन से डील के तहत उन्हें ड्रैगन की एजेंसी एमएसएस को सौंप सकता है। यह चीन की सीक्रेट सर्विस है। यही वजह है कि चीन इस बात की मांग कर रहा है कि अमेरिका ETIM को फिर से वैश्विक आतंकी संगठन घोषित करे। इसके अलावा चीन की ओर से तालिबान से यह मांग भी की जा सकती है कि वह पाकिस्तान में सक्रिय पाक तालिबान पर लगाम कसे। इस संगठन से उसके चाइना पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर प्रोजेक्ट को खतरा है।
पाक तालिबान पर लगाम की भी मांग करेगा चीन
पाक तालिबान के आतंकियों ने खैबर पख्तूनख्वा में चीन के कर्मचारियों और इंजीनियरों पर हमला किया था। ये लोग चाइना पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर का काम देख रहे थे। इसके अलावा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और बलूचिस्तान में भी चीनियों को हमले झेलने पड़ रहे हैं। हालांकि यह इतना आसान नहीं होगा। यही चीन की विदेश नीति की परीक्षा है और देखना होगा कि तालिबान से दोस्ती का उसे कितना नुकसान या फिर रणनीतिक बढ़त मिलती है।