लिंगायतों के बीच अचानक क्यों बढ़े येदियुरप्पा के दौरे? कर्नाटक में एक बार फिर से तेज हुए कयास

कर्नाटक में भले ही नेतृत्व परिवर्तन के कयासों को बीजेपी की ओर से खारिज किया गया है, लेकिन अंदरखाने ‘ऑल इज वेल’ नहीं दिखता। खासतौर पर सीएम बीएस येदियुरप्पा की गतिविधियों को देखें तो बीते कुछ दिनों में उन्होंने लिंगायत मठों का दौरा तेज किया है। अपने बेटे बीवाई विजयेंद्र के साथ वह लिंगायत मठों का दौरा कर रहे हैं और धर्मगुरुओं से मुलाकात कर रहे हैं। कर्नाटक में बड़ी आबादी वाले इस समुदाय में येदियुरप्पा की अच्छी पकड़ मानी जाती है, लेकिन इसे मजबूत करने और शक्ति प्रदर्शन के लिहाज से वह एक बार फिर से इनके बीच पहुंच रहे हैं।

हाल ही में लिंगायत समुदाय के बेक्किना कल मठ के स्वामी मल्लिकार्जन मुरुघराजेंद्र ने कहा कि लोगों को कर्नाटक में लीडरशिप में बदलाव की बात नहीं करनी चाहिए। उनके इस बयान से यह अर्थ निकाला जा रहा है कि शायद येदियुरप्पा के पक्ष में उन्होंने यह बात कही है, जो बीजेपी लीडरशिप पर दबाव की रणनीति हो सकती है। उन्होंने शनिवार को कहा था, ‘किसी को भी राज्य में लीडरशिप में बदलाव की बात नहीं करनी चाहिए। यह कर्नाटक के लिए कोरोना से भी बड़ी आपदा जैसा होगा।’ 1983 में पहली बार विधायक बने येदियुरप्पा ने 2008 में बीजेपी को कर्नाटक की सत्ता तक पहुंचाया था।

2008 में कर्नाटक से खुला था बीजेपी का दक्षिण द्वार
आमतौर पर उत्तर भारत की पार्टी समझी जाने वाली बीजेपी के लिए यह दक्षिण में एक द्वार खुलने जैसा था। उससे पहले बीजेपी ने 2006 जेडीएस के साथ गठबंधन किया था, लेकिन दो साल बाद यह गठबंधन टूट गया था। तब जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी पर आरोप लगा था कि उन्होंने येदियुरप्पा को सीएम पद देने से इनकार कर दिया था। इसे लिंगायत समुदाय ने अन्याय के तौर पर लिया था। इसके बाद नए हुए चुनाव में येदियुरप्पा के नाम पर वोट हुआ और वह सीएम बने।

येदियुरप्पा से असंतुष्ट बताए जा रहे पार्टी के विधायक
हालांकि सीएम बनने के बाद उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगे। इसके बाद 2012 में येदियुरप्पा ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया और उसका असर पार्टी को 2013 के चुनावों में महज 40 सीटों पर जीत के साथ दिखा। उसके बाद वह फिर बीजेपी में वापस आए और एक बार फिर से प्रदेश के सीएम बने। हालांकि हालात फिर बिगड़ रहे हैं और विधायकों के उनसे असंतुष्ट होने की बात कही जा रही है। इसी के चलते कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन की कई बार चर्चाएं शुरू हुई हैं, लेकिन कुछ ही दिनों में ऐसी बातें दम भी तोड़ गईं।

पार्टी नेता बोले, अब 100 गुना कमजोर हो गए हैं येदियुरप्पा
दरअसल पार्टी लीडरशिप के एक वर्ग को लगता है कि येदियुरप्पा को हटाया जा सकता है। वहीं एक धड़ा यह मानता है कि उन्हें हटाने के बाद नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। पार्टी के एक राष्ट्रीय नेता ने कहा, ‘येदियुरप्पा ने 2011 में जब सीएम पद से इस्तीफा दिया था, तब केंद्र में हमारी सरकार नहीं थी और मोदी जैसा कोई नेता नहीं था।  तब सिर्फ 4 राज्यों में ही हमारी सत्ता थी। आज के मुकाबले येदियुरप्पा तब 100 गुना ताकतवर थे और तब भी उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। अब तो समय काफी बदल गया है।’

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