कोरोना रोगियों में ब्लैक फंगस म्यूकरमाइकोसिस संक्रमण के बढ़ते मामलों से चिंतित सरकार ने इसके इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा एंफोटेरेसिन बी इंजेक्शन की उपलब्धता बढ़ाने के लिए प्रयास तेज कर दिए हैं। सरकार ने इसके तीन लाख इंजेक्शन का आयात किया है, जिसकी आपूर्ति 31 मई तक होगी। साथ ही देश में इसका उत्पादन बढ़ाकर 3.80 लाख इंजेक्शन प्रतिमाह कर दिया है।
रसायन एवं उर्वरक राज्यमंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि देश में अभी ब्लैक फंगस के करीब पांच हजार सक्रिय रोगियों का पता चल चुका है। फंगस उपचार में एंफोटेरेसिन बी इंजेक्शन का इस्तेमाल किया जाता है। इसे देश में चार कंपनिया बना रही हैं। उनकी उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर 3.80 लाख प्रतिमाह किया है। उन्हें और अधिक उत्पादन बढ़ाने को कहा गया है। यह जेनेरिक दवा है। जरूरत पड़ने पर और कंपनियां भी बना सकती हैं। इस बीच तीन लाख इंजेक्शन आयात किए हैं।
मंत्री ने कहा कि इसके एक इंजेक्शन की कीमत करीब सात हजार रुपये है। फंगस संक्रमण से ग्रस्त एक मरीज को 50-150 इंजेक्शन की जरूरत पड़ सकती है। इस हिसाब से मौजूदा उपलब्धता ठीक है लेकिन आगे इस बीमारी का प्रसार कैसा होगा, कहना मुश्किल है। फिर भी दवा की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के सभी प्रयास तेज किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि दवा का राज्यों को जरूरत के हिसाब से आवंटन किया जा रहा है।
रेमडेसिविर
अप्रैल में प्रतिमाह 10 लाख वायल तैयार हो रही थी लेकिन मई में यह बढ़कर एक करोड़ पार कर गया है। 20 की बजाय अब 60 उत्पादन इकाइयों में यह तैयार हो रहा है। राज्यों को अब रेमडेसिविर मांग के अनुसार दी जा रही है। तमिलनाडु ने 20 हजार और तेलंगाना ने 10 हजार प्रतिदिन की मांग की जो उन्हें दी जा रही है।
टोस्लीजुमैब
30 हजार इंजेक्शन आयात का ऑर्डर दिया है। सिप्ला को कहा गया है कि अतिरिक्त 50 हजार इंजेक्शन और खरीदे। यह अभी तक देश में नहीं बनती है लेकिन अब सन फार्मा ने इसका विकल्प इटोलीजुमैब तैयार कर लिया है जिसका उत्पादन आने वाले दिनों में शुरू होगा।
इन दवाइयों का उत्पादन भी बढ़ा
इसी प्रकार डेक्सामैथासोन 0.5 एमजी टेबलेट का उत्पादन 6-8 गुना, डेक्सामैथासोन इंजेक्शन चार गुना, इनोक्सापरीन इंजेक्शन चार गुना, मिथाइल प्रीड्नाइसोलोन तीन गुना, आईवरमैक्टिन 12 एमजी टेब पांच गुना करीब 7.70 करोड़ प्रतिमाह तथा फेविरपीरावीर का प्रतिमाह 16.44 करोड़ डोज प्रतिमाह किया जा रहा है।