भइया अब इसका हम लोग क्या करेंगे। यह सब तुम्हारे लिए था।’ यह कहते हुए वह दहाड़े मार मारकर रो रही थी। साथ ही अपने हाथों से भाई की चिता पर पगड़ी, शेरवानी, कुर्ता-पायजामा जैसी चीजें रखती जा रही रही थी। आस-पास खड़े दो चार लोग उसे चिता से दूर खींचकर लाते। थोड़ी देर बाद वह फिर चिता के करीब पहुंच जाती। लखनऊ के गुलालाघाट पर यह हृदयविदारक दृश्य जो भी देख रहा था उसकी आंखे डबडबा गईं।
अप्रैल की 27 तारीख को ग्वालियर के त्रिभुवन शर्मा का परिवार राजधानी आया था। उन्हें अपने बेटे राहुल का विवाह 29 अप्रैल को राजधानी से करना था। इंदिरानगर के एक गेस्ट हाउस में वह रुके थे। उनके साथ बेटी दिव्या, पत्नी मंजू समेत दो-चार रिश्तेदार और थे। राजधानी पहुंचते ही राहुल की तबीयत अचानक खराब होने लगी। अगले दिन यानी 28 अप्रैल को राहुल का आक्सीजन स्तर काफी नीचे चला गया। कोरोना संक्रमित होने पर उसे किसी तरह चौक के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। उधर, विवाह का कार्यक्रम स्थगित हो गया।
पिता उसके विवाह के लिए जो जमापूंजी लाए थे वह उसके इलाज पर लगने लगी। मां को रिश्तेदारों के साथ ग्वालियर भेज दिया। त्रिभुवन और उनकी बेटी दिव्या भाई की देखरेख के लिए यहीं रुक गए। त्रिभुवन शर्मा ने बताया कि दो दिन बाद बेटे की हालत में सुधार नजर आया। पर अचानक उसकी तबियत बिगड़ने लगी। ऑक्सीजन लगने के बाद भी उसकी हालत में सुधार नहीं आया। संक्रमण फेफड़े से किडनी तक पहुंच गया था। आखिर राहुल रविवार की तड़के जिन्दगी की जंग हार गया।
कोविड प्रोटोकाल के तहत गुलालाघाट पर राहुल का अंतिम संस्कार हुआ। बहन दिव्या बोलने की स्थिति में नहीं थी। पिता ने बताया कि विवाह के लिए राहुल के जितने कपड़े बने थे वह सब बेटी ने चिता को समर्पित कर दिए। उन्होंने बताया कि राहुल बेंगलुरु में एक साफ्टवेयर कंपनी में काम करता था। जिस लड़की से उसका विवाह होना था वह भी उसके साथ नौकरी करती थी। यह कहते-कहते वह फफक कर रो पड़े। बोले ‘बड़े अरमानों से यहां आए थे कि बहू लेकर जाएंगे। पर इसकी कल्पना तक नहीं की थी।’