गंगा किनारे बसे उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले को लहुरी काशी भी कहते हैं. वाराणसी से करीब 70 किलोमीटर दूर गाजीपुर के युवाओं में सेना की भर्ती को लेकर गजब दीवानापन है. यहां के गहमर गांव के लिए अलग से भर्ती निकलती है. बहरहाल, गाजीपुर का हर युवा वतनपरस्ती की कसम नहीं खाता. कुछ ऐसे भी हैं, जिन्होंने यहीं रहकर गुनाहों की अलग दुनिया बनाई, बसाई और तमाम हत्याकांड के जरिये अपराध की उस दुनिया को आबाद रखा. इसी गाजीपुर के एक माफिया का नाम है मुख्तार अंसारी. लेकिन, आज हम आपको मुख्तार की कहानी नहीं बताएंगे, बल्कि उस शख्स की जिंदगी के राज खोलेंगे, जिसने मुख्तार अंसारी को माफिया बनाया. सरेआम कत्ल करना सिखाया और गुनाहों की सीढ़ी पर कई पायदान चढ़ने में उसकी मदद की।
गाजीपुर जिला तमाम माफियाओं की जन्मस्थली और उनके तमाम कांड का सबसे पुख्ता गवाह भी है. इस जिले का सैदपुर थाना तो दुर्दांत अपराधों के इतिहास से भरा पड़ा है. सैदपुर कोतवाली क्षेत्र के मुड़ियार गांव के ही रहने वाले थे साधु सिंह और मकनू सिंह. इनके चाचा थे रामपत सिंह. वो 80 के दशक में प्रधान चुने गए. साधु और मकनू को इस बात की खुशी कम थी और गम ज्यादा, क्योंकि उनका पट्टीदार रसूखदार आदमी बन गया था. बहरहाल, रामपत को इस बात की कोई खबर नहीं थी कि उनके भतीजे साधु और मकनू क्या साजिश कर रहे हैं।
साधु और मकनू कौन थे?
एक दिन पांच बीघे जमीन को लेकर साधु और मकनू ने रामपत सिंह के साथ गाली-गलौज कर दी. रामपत ने इसे अपमान समझते हुए अपने बेटे त्रिभुवन सिंह और बाकी बेटों के साथ मिलकर साधु और मकनू को लाठी-डंडों से बुरी तरह पीट दिया. कुछ महीने तक दोनों गुट शांत रहे. एक दिन मौका पाकर साधु और मकनू ने त्रिभुवन सिंह के पिता रामपत को लाठी-डंडों से पीटकर मार डाला. प्रधान रामपत की हत्या के बाद साधु और मकनू कुछ दिन फरार रहे. कुछ समय बाद दोनों गांव लौटे और रामपत के तीन बेटों की भी हत्या कर दी. पिता और तीन भाइयों की हत्या के बाद त्रिभुवन सिंह और उसके भाई राजेंदर को गांव छोड़ना पड़ा।
साधु, मकनू ऐसे बन गए मुख्तार के आपराधिक गुरु
80 के दशक में मुख्तार अंसारी कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ इलाके में दबंगई की शुरुआत कर चुका था. इसी दौर में मोहम्मदाबाद से उसके पिता नगर पंचायत के चेयरमैन थे. इलाके में एक और प्रभावशाली शख्स था सच्चिदानंद राय. किसी बात को लेकर सच्चिदानंद और मुख्तार के पिता के बीच विवाद हो गया. सच्चिदानंद ने मुख्तार के पिता को भरे बाजार काफी भला बुरा कहा. इस बात की खबर जब मुख्तार को लगी तो उसने सच्चिदानंद राय की हत्या का फैसला कर लिया, लेकिन मोहम्मदाबाद में राय बिरादरी प्रभावशाली और जनसंख्या में ठीक-ठाक थी, जिसकी वजह से मुख्तार इस सोच में पड़ गया कि इस मुश्किल काम को अंजाम कैसे दिया जाए।
पिता के अपमान का बदला लेने की आग दिल में सुलगाए घूम रहे मुख्तार ने साधु और मकनू से मदद मांगी. तब तक साधु और मकनू अपने पट्टीदार रामपत सिंह और उनके तीन बेटों की हत्या करके गाजीपुर और आसपास के इलाकों में बतौर दबंग स्थापित हो चुके थे. दोनों ने मुख्तार की पीठ पर हाथ रख दिया. लिहाजा सच्चिदानंद राय की हत्या हो गई. साधु और मकनू ने मुख्तार के पिता का बदला लेने में मदद की, जिसके बाद मुख्तार उन्हें अपना आपराधिक गुरु मानने लगा. अब वक्ता आ गया था गुरुदक्षिणा देने का. साधु और मकनू ने मुख्तार के सामने एक ऐसा प्रस्ताव रखा, जिसने पूरे पूर्वांचल में सबसे खौफनाक आपराधिक इतिहास की नींव तैयार कर दी।
साधु, मकनू ने मुख्तार से गुरुदक्षिणा में मांगी रणधीर सिंह की लाश
सैदपुर के पास मेदनीपुर के छत्रपाल सिंह और रणजीत सिंह भाई थे. दोनों भाई क्षेत्र में दबंग छवि के थे, लिहाजा साधु और मकनू को ये बात अखर रही थी. वो सैदपुर समेत गाजीपुर में सबसे बड़े दबंग के तौर पर स्थापित होना चाह रहे थे. छत्रपाल और रणजीत सिंह साधु और मकनू की आंखों में खटकने लगे. वर्चस्व की जंग में कुर्बानी का वक्त आ गया था. साधु और मकनू ने एक दिन मुख्तार को बुलाया और उससे कहा कि रणजीत सिंह की हत्या कर दो. एक बार तो मुख्तार भी ये सुनकर हिल गया, लेकिन आपराधिक गुरुओं ने पहली बार कोई काम कहा था, लिहाजा मुख्तार इनकार नहीं कर सका. रणजीत सिंह की हत्या के लिए मुख्तार ने जो तरीका अपनाया, वो आपने फिल्मों में ही देखा होगा।
स्थानीय लोग बताते हैं कि मुख्तार अंसारी ने रणजीत सिंह के घर के ठीक सामने रहने वाले रामू मल्लाह से दोस्ती की. वही रामू मल्लाह जो बाद में मुख्तार का शार्प शूटर बन गया. रामू मल्लाह के घर की बाहरी दीवार पर मुख्तार ने अंदर से बाहर तक एक सुराख किया. ठीक ऐसा ही सुराख रणजीत के घर में करवाया. अब वो रामू मल्लाह के घर वाले सुराख से सीधे रणजीत के आंगन में देख सकता था. एक दिन रणजीत अपने आंगन में घूम रहा था. सटीक निशानेबाज मुख्तार ने निशाना लगाया. एक गोली चली और रणजीत ढेर हो गया. जल्द ही इलाके में ये खबर फैल गई कि रणजीत की हत्या किसने की है और किसने कहने पर की. यानी अब मुख्तार और उसके गुरुओं साधु, मकनू का सिक्का गाजीपुर से वाराणसी तक जमने लगा।
साधु-मकनू के करीबी बंसी, पांचू ने कर दी बृजेश के पिता की हत्या
रणजीत सिंह की हत्या के बाद गाजीपुर, मऊ, आजमगढ़, वाराणसी तक मुख्तार, साधु और मकनू के खौफ की चर्चा होने लगी, लेकिन वाराणसी में इस हत्याकांड को लेकर एक अलग ही कहानी चल रही थी. 1984 में वाराणसी के धौरहरा में रहने वाले बृजेश सिंह के पिता रवींद्रनाथ की हत्या उन्हीं के पट्टीदार बंसू और पांचू ने कर दी. बंसी और पांचू के अलावा कई और लोग भी इस हत्याकांड में आरोपी थे. कहते हैं कि बृजेश ने बंसी और पांचू को मारकर पिता की हत्या का बदला लेने के लिए अपना घर छोड़ दिया. पिता की जलती चिता के सामने खड़े होकर बदला लेने की सौगंध ली. एक साल के अंदर ही उसने पिता की हत्या के एक आरोपी हरिहर सिंह की हत्या कर दी।
बृजेश ने अपने पहले हत्याकांड को फिल्मी स्टाइल में अंजाम दिया. वो हरिहर सिंह के घर गया, उसके पैर छुए और गोली मार दी. पिता की हत्या का पहला बदला पूरा हो चुका था. 1985 में बृजेश सिंह पर इस हत्याकांड का केस दर्ज हुआ, लेकिन वो पुलिस की पकड़ से दूर रहा. अगले ही साल 1986 में चंदौली जिले के सिकरौरा गांव में एकसाथ 7 लोगों की हत्या हो गई. आरोप लगा कि बृजेश ने अपने पिता की हत्या में शामिल पूर्व प्रधान रामचंद्र यादव समेत उसके भाइयों और चार भतीजों की दुर्दांत तरीके से हत्या कर दी. पुलिस ने बृजेश को गिरफ्तार किया और जेल भेज दिया. जेल में उसकी मुलाकात हिस्ट्रीशीटर त्रिभुवन सिंह से हुई. वही त्रिभुवन सिंह, जिसके पिता को मुख्तार के गुरु साधु और मकनू ने मारा था. बृजेश सिंह को मालूम चला कि उसके पिता के हत्यारे बंसी और पांचू भी साधु और मकनू से जुड़ चुके हैं. यानी अब त्रिभुवन सिंह और बृजेश सिंह के दुश्मन एक ही थे- बंसी, पांचू, साधु, मकनू और मुख्तार।
बृजेश ने कर दी मुख्तार के गुरु साधु की हत्या
1988 तक बृजेश सिंह गैंगस्टर और त्रिभुवन सिंह हिस्ट्रीशीटर बन चुका था. जिस तरह मुख्तार ने साधु और मकनू को अपना आपराधिक गुरु मान लिया था, वैसे ही त्रिभुवन को बृजेश सिंह ने आपराधिक गुरु मान लिया था, क्योंकि त्रिभुवन के पास उस समय लोग थे और पैसा भी. बताते हैं कि त्रिभुवन सिंह ने बृजेश सिंह को बताया कि कैसे मुख्तार के गुरु साधु और मकनू ने उसके पिता की हत्या कर दी थी. त्रिभुवन चाहता था कि बृजेश उसके पिता की हत्या का बदला ले. बृजेश ने त्रिभुवन की बात नहीं टाली।
इस हत्याकांड के बारे में करीब से जानने वाले बताते हैं कि बृजेश और त्रिभुवन दोनों गाजीपुर सदर हॉस्पिटल पहुंचे. यहां प्राइवेट वॉर्ड में साधु सिंह अपने लड़के को देखने आया था. बृजेश और त्रिभुवन पुलिस की वर्दी में थे, इसलिए किसी ने उन्हें रोका-टोका नहीं. वो सीधे साधु सिंह के बेटे के वॉर्ड में पहुंचे. वहां देखते ही साधु की गोली मारकर हत्या कर दी. इसके कुछ दिनों बाद ही गाजीपुर सिंचाई विभाग चौराहे पर बम मारकर मुख्तार के दूसरे गुरु मकनू सिंह की हत्या कर दी गई. दोनों आपराधिक गुरुओं की हत्या हो जाने के बाद साधु, मकनू गिरोह का सरगना मुख्तार बन गया. बताते हैं कि मुख्तार ने पिता की तरह साधु और मकनू के परिवार के सारे दायित्व निभाए, लेकिन सबसे बड़ा सपना था कि अपने गुरुओं की हत्या का बदला लेना।