अपीलों से सांसें बचीं, अदालतों से फांसी की सजा होने के बाद प्रदेश के 44 अपराधियों को फांसी का इंतजार

अपीलों से सांसें बचीं, अदालतों से फांसी की सजा होने के बाद प्रदेश के 44 अपराधियों को फांसी का इंतजार

मध्य प्रदेश :- विभिन्न स्तर पर अपीलों की वजह से इन अपराधियों ने अपनी सांसों को बचा रखा है। प्रदेश की जेलों में 44 ऐसे अपराधी बंद हैं जिन्हें अदालतों ने फांसी की सजा सुना दी है। इंदौर के तीन अपराधियों की राष्ट्रपति से दया याचिका नामंजूर हो जाने के बाद भी फांसी अधर में लटकी है क्योंकि ब्लैक ऑर्डर जारी होने के पहले इनकी सुप्रीम कोर्ट में फिर याचिका लगा दी गई। संगीन अपराधों में अपराध साबित होने के बाद अदालतों से फांसी की सजा पा चुके 44 अपराधी आज भी मध्य प्रदेश की विभिन्न जेलों में सालों से बंद हैं। अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट में फांसी की सजा पाने वाले भोपाल की सेंट्रल जेल में बंद छह अपराधियों के पहले यह संख्या 38 थी। इनमें से इंदौर के सन्नी उर्फ देवेंद्र पिता सुरेश, बाबू उर्फ केतन पिता रमेश और केदार के मामले में राष्ट्रपति ने 2016 में दया याचिका को नामंजूर कर दिया था। इसके बाद एक एनजीओ के माध्यम से इनका मामला फिर सुप्रीम कोर्ट में चला गया और आज तक उनकी फांसी की सजा अटकी है। इंदौर जेल अधीक्षक

अलका सोनकर ने बताया कि गैंग रेप के जिस मामले में सन्नी, बाबू को फांसी हुई है, उसमें एक आरोपी जीतेंद्र उर्फ जीतू भी था और उसकी फांसी की सजा को आजीवन कारावास में परिवर्तित कर दिया गया है। बताया जाता है कि आजीवन कारावास में उसे पैरोल की सुविधा से वंचित रखा गया है। सूत्र बताते हैं कि मध्य प्रदेश की जेलों में 44 अपराधी फांसी की सजा पा चुके हैं। इनमें सबसे ज्यादा जबलपुर सेंट्रल जेल में बंद 16 अपराधी हैं जिन्हें फांसी की सजा हो चुकी है। इनके अलावा इंदौर में 11, भोपाल में आठ, ग्वालियर, उज्जैन व नरसिंहपुर में तीन-तीन कैदी फांसी की सजा वाले हैं जिनकी उच्च अदालतों में अपील है। जेल सूत्रों के मुताबिक जेलों में बंद सजायाफ्ता कैदियों पर हर साल प्रति कैदी 35 हजार रुपए के करीब खर्च होता है।

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