पूर्वोत्तर राज्य नागालैंड में सेना की फायरिंग में कम से कम 13 बेकसूर ग्रामीणों की मौत ने इलाके में दशकों से जारी उग्रवाद-विरोधी अभियान को एक बार फिर कठघरे में खड़ा कर दिया है.असम राइफल्स पर खासकर नागालैंड और मणिपुर में आम लोगों पर अत्याचार और बेकसूरों की हत्या के आरोप पहले से भी लगते रहे हैं. इस घटना के विरोध में तमाम जनजातीय संगठनों ने सोमवार को राज्य में छह घंटे बंद रखा है. राज्य के सबसे बड़े त्योहार हॉर्नबिल फेस्टिवल पर भी इसका साया नजर आने लगा है. मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो सोमवार को प्रभावित जिले का दौरा कर रहे हैं. संसद में भी घटना को लेकर हंगामा हुआ. कांग्रेस के गौरव गोगोई और मणिकाम टैगोर व आरजेडी के मनोज कुमार झा समेत कई सांसदों ने स्थगन का नोटिस दिया. कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे ने राज्यसभा में यह मामला उठाया और प्रधानमंत्री व रक्षा मंत्री से बयान देने की मांग की. हंगामे के बाद राज्यसभा को कुछ देर के लिए स्थगित करना पड़ा. तस्वीरेंः कहां की पुलिस सबसे भरोसेमंद हाल के वर्षों की इस पहली घटना ने जहां कई अनुत्तरित सवाल खड़े किए हैं, वहीं इलाके में विवादास्पद सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) के खिलाफ एक बार फिर विरोध के स्वर तेज हो रहे हैं. सवाल पूछा जा रहा है कि क्या सेना ने इतने बड़े ऑपरेशन से पहले उग्रवादियों के बारे में मिली सूचना की पुष्टि नहीं की थी या फिर बीते दिनों मणिपुर में एक कर्नल विप्लव त्रिपाठी के सपिरवार मारे जाने के बाद उसके खिलाफ उग्रवादियों के खिलाफ किसी बड़े ऑपरेशन को अंजाम देने का भारी दबाव था? ताजा मामला नागालैंड के मोन जिले में एक के बाद एक गोलीबारी की तीन घटनाओं में सुरक्षाबलों की गोलियों से कम से कम 13 लोगों की मौत हो गई जबकि 11 अन्य घायल हो गए. पुलिस की कहना है कि गोलीबारी की पहली घटना शायद गलत पहचान के कारण हुई. उसके बाद हुई झड़प में एक जवान की भी मौत हो गई.
नागालैंड की घटना से उग्रवाद-विरोधी अभियानों पर सवाल
