ब्रिटेन के इतिहासकारों ने खुलासा किया है कि पहले विश्व युद्ध में लड़ने वाले पंजाब के 3.2 लाख सैनिकों के रिकॉर्ड 97 सालों तक एक तहखाने में रहे। यह रिपोर्ट गार्डियन ने दी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक लाहौर लाइब्रेरी में मिले फाइल्स को अब डिजिटाइज़ किया जा रहा है। अब तक 45 हजार से अधिक डॉक्यूमेंट डिजिटाइज़ किए जा चुके हैं।
अभी तक इतिहासकार ब्रिटिश और आयरिश सैनिकों के वंशज सर्विस रिकॉर्ड के पब्लिक डेटाबेस को खोज सकते थे लेकिन भारतीय सैनिकों के लिए अब तक ऐसी कोई सुविधा नहीं थी। इन रिकॉर्ड्स से उम्मीद की जा रही है कि ये रिकॉर्ड राष्ट्रमंडल के सैनिकों के योगदान के बारे में मिथकों को दूर करने में मदद करेंगे।
गांवों में सैनिकों की दर 40 फीसद तक
रिपोर्ट के मुताबिक इसमें हिंदू, मुस्लिम और सिख पंजाबी शामिल हैं। ये सैनिक भारतीय सेना का करीब एक तिहाई थे। 1879 में ईडन आयोग की रिपोर्ट बताती है कि पंजाब भारत की सबसे मार्शल दौड़ का घर है और हमारे सर्वश्रेष्ठ सैनिकों की नर्सरी है। दस्तावेजों से पता चला है कि कई गांवों में सैनिकों की दर 40 फीसद तक थी।
फाइलों को डिजिटाइज़ करने के लिए ग्रीनविच यूनिवर्सिटी के साथ काम करने वाले यूके पंजाब हेरिटेज एसोसिएशन के अध्यक्ष अमनदीप मदरा ने कहा है कि पंजाब पहले विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सेना के लिए भर्ती का मुख्य मैदान था। सैनिकों का योगदान काफी हद तक अपरिचित रहा है। ज्यादातर मामलों में हम उनके नाम तक नहीं जानते थे। 1919 में पंजाब सरकार द्वारा युद्ध समाप्त होने पर रजिस्टरों को संकलित किया गया था। 26 हजार पेजों को मिलाकर, जिसमें कुछ हाथ से लिखे गए हैं जबकि अन्य टाइप किए गए हैं।
बता दें कि पहली बार 2014 में लाहौर लाइब्रेरी से फाइल्स को लेकर संपर्क किया गया था, उनके बारे में भारतीय सैन्य इतिहासकारों द्वारा बताया गया था, जो उनके अस्तित्व के बारे में जानते थे लेकिन कभी पहुंच नहीं सके थे।