दुनिया की सरकारों को सतत विकास लक्ष्यों का अनुमोदन किए हुए छ: वर्ष से अधिक समय बीत चुका है और करीब पांच वर्ष पहले उन्होंने पेरिस जलवायु समझौते पर हस्ताेक्षर किए थे। बड़ी कंपनियों ने कहा था कि वे व्यवसाय के ऐसे तरीके अपनाएंगी जिससे सतता को बढ़ावा मिले। क्या उन्होंने ऐसा किया है?
कोरी बातें तो बहुत हुई हैं पर काम उतना नहीं हुआ।
• सततता के लिए कंपनी और निवेशकों ने वायदे तो बहुत किए फिर भी उनका प्रत्यतक्ष उत्सएर्जन 2015 और 2019 के बीच 10 प्रतिशत से अधिक बढ़ गया।
• पैकेजिंग का 98 प्रतिशत प्लास्टिक एक बार इस्तेामाल का है और एक-तिहाई से अधिक को दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
• स्त्री-पुरुष के वेतन में वैश्विक अंतर अब भी 16 प्रतिशत बताया जाता है। हालांकि यह मान्यता है कि स्त्री -पुरुष बराबरी से वृद्धि को प्रोत्साहन मिल सकता है और पर्यावरण टिकाऊ हो सकता है। यूएन वीमैन की पूर्व उप-कार्यकारी निदेशक लक्ष्मीस पुरी जैसे विशेषज्ञ इस तरफ इशारा कर चुके हैं।
यदि हमें अपनी भावी पीढ़ियों के अस्तित्व की रक्षा करनी है तो इस पृथ्वी के अस्तित्व को बचाना होगा। कंपनियों को अपने कामकाज की शैली की समीक्षा कर उसमें मूल परिवर्तन लाना होगा और उनके सामने जो चुनौतियां आएंगी उनसे निपटने में सरकार को समर्थन देना होगा।
2021 फाइनेंसिंग फॉर सस्टेनेबल डेवलेपमेंट रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि व्यवसाय करने का वर्तमान मॉडल इतनी तेजी से नहीं बदल रहा है कि सतता की दृष्टि से हमारी वैश्विक आकांक्षा की पूर्ति हो सके। परिवर्तन के लिए निजी क्षेत्र के वायदे और उसके वास्तवविक व्यंवहार के बीच इस विसंगति से आम जनता अनभिज्ञ नहीं है। एक सर्वेक्षण में विश्व भर में जवाब देने वाले 20 प्रतिशत से भी कम लोग मानते हैं कि वर्तमान व्यववस्थाि उनके लिए हितकारी है और 56 प्रतिशत का मानना है कि पूंजीवाद का वर्तमान रूप हित से ज्यासदा उनका अहित कर रहा है।
अब हम क्या करें?
सबसे पहले हमें व्यवसाय के नियम बदलने होंगे। बढ़ती संख्या में निवेशक मानते हैं कि पर्यावरण और समाज के प्रति लाभ और मुनाफा एक-दूसरे से कटे हुए नहीं हैं और वे दोनों की मांग कर रहे हैं। पर्यावरण, सामाजिक और प्रशासनिक (एनवायरन्में ट, सोशल एंड गवर्नेंस, ईएसजी) में बढ़ते निवेश के बावजूद बाजार इस नियम को अपनाने में बहुत लंबा समय ले रहा है। जब तक व्यवसाय को ऐसे तरीके से चलाना मुनाफा देता रहेगा जो पर्यावरण या समाज की दृष्टि से टिकाऊ न हो, तब तक समाज और व्यनवसायों के लक्ष्यों के बीच विसंगति रहेगी।
सरकार, नीतियों और विनियमों में परिवर्तन करके इन नियमों को बदल सकती है। उदाहरण के लिए सरकारें कार्बन उत्सोर्जन मूल्यक लागू कर सकती हैं और सीमाओं के आर-पार कार्बन शुल्क में तालमेल कर सकती हैं। सरकारी ठेके देते समय ऐसी कंपनियों को वरीयता दी जा सकती है जो अल्पंसंख्यकों को शामिल करती हैं और स्त्री -पुरुष अनुपात में संतुलन रखती हैं। वे यह भी सुनिश्चित कर सकती हैं कि सामान बनाने वालों को पर्यावरण पर उनके उत्पाद के प्रभाव के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सके (उदाहरण के लिए नीति बनाने वालों को मोबाइल फोन से उत्पन्न ई-कचरे का दोबारा इस्तेमाल करने की जिम्मेदारी फोन बनाने वालों पर डालनी चाहिए)।
निजी क्षेत्र में पारदर्शिता
दूसरे, निजी क्षेत्र के कायाकल्प के लिए पारदर्शिता परम आवश्यक है। समुचित और निष्पक्ष जानकारी दिए बिना कंपनियों को सतत विकास पर उनके प्रभाव के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इस तरह की जानकारी देने से निवेशक अपनी सतता नीतियों के अनुरूप परिसंपत्तियों का आवंटन करने में समर्थ हो सकेंगे।
कंपनियों की सततता रिपोर्ट की संख्या तो बढ़ती जा रही है, किन्तु उसमें प्रकाशित जानकारी अक्सर या तो तुलना योग्य नहीं होती अथवा अधूरी होती है क्यों कि कंपनियां अलग-अलग तरीकों से रिपोर्ट तैयार करती हैं और अपनी कमियों की जानकारी न देने का विकल्प चुन सकती हैं।
नियामक, सततता की रिपोर्ट देने के प्रारूप को सुगठित करने और जानकारी देने का एक न्यूमनतम अनिवार्य स्तर निर्धारित कर पारदर्शिता सुधार सकते हैं। उन्हें कंपनियों से यह भी अनुरोध करना चाहिए कि वे ऐसी विश्व्सनीय सततता योजनाएं प्रकाशित करें जिनके लक्ष्यों को मापा जा सके। निवेशकों को कंपनियों और नियामकों के साथ संपर्क रखते हुए अनुरोध करना चाहिए कि वे सामग्री टिकाऊ होने के जोखिमों की जानकारी दे और जो कंपनियां पारदर्शी सततता योजनाएं प्रकाशित करें उन्हें अधिक निवेश के माध्यरम से पुरस्कृोत करना चाहिए।
उत्पादों की साख
तीसरे, हमें सतत निवेश उत्पाादों की साख को और मजबूत करना चाहिए। हरित बांड्स और ईएसजी निधियों के बढ़ने से सतत निवेश उत्पांदों का चलन होने लगा है। हरित बांड लेबल यह प्रमाणित करता है कि जिस विशिष्ट गतिविधि के लिए धन दिया जा रहा है वह पर्यावरण के अनुकूल है, किन्तु उसमें इस बात का कोई उल्लेाख नहीं होता कि कंपनी की रणनीति कितनी पर्यावरण अनुकूल है। अत: इस बात का कोई पुख्ताल प्रमाण नहीं मिलता कि हरित बांड जारी करने वाली कंपनियों की कार्बन उत्सर्जन तीव्रता में समय के साथ कमी आएगी।
हरित बांड लेबल और ‘हरित रेटिंग्स्’ के बीच विसंगति से पर्यावरण की आड़ लेने (ग्रीन वाशिंग) अथवा एसडीजी वाशिंग की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिल सकता है। हमें हरित बांड लेबल के साथ जारीकर्ता के लिए ‘हरित रेटिंग्स’ भी देनी होंगी (अर्थात यह प्रमाणित करना होगा कि कंपनी दो डिग्री सेलसियस के रास्तें पर अग्रसर है)।
हमें ऐसी ईएसजी निधियों को प्रोत्सा हित करना होगा जो इस बात पर ध्यारन देती हैं कि उनकी लक्षित कंपनियों और परियोजनाओं का सतत विकास लक्ष्यों पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। ग्लोबल इनवेस्टकर्स फॉर सस्टेनेबल डेवलेपमेंट (जीआईएसडी) एलायंस ने सतत विकास निवेश की एक सामान्य परिभाषा विकसित की है जो बाजार के लिए एक असरदार उपाय हो सकती है।
सतत विकास निवेश की एक सामान्य परिभाष तैयार करने के लिए अनेक प्रकार के अलग-अलग प्रयास किए गए हैं। सतत विकास के मुद्दों की तात्कालिक आवश्य़कता को देखते हुए नियामकों को चाहिए कि वे ऐसे प्रयासों को एकजुट करने में मदद करें जिससे बाजार के लिए एकीकृत और असरदार नियम पर सहमति हो सके।
कोविड-19 ने सरकारों और कंपनियों के बीच भागीदारी के महत्व को पुष्ट किया है। उन्हें इस मौके का फायदा उठाकर परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।
ऊपर बताए गए तीनों कदम सरकारों और निजी क्षेत्र के लिए व्यवसाय का ऐसा नया मॉडल मिलकर तैयार करने के आधार बन सकते हैं जो जनता और पृथ्वी दोनों के लिए हितकारी हो।
बेहतर विश्व की रचना के लिए यह आवश्यक है कि निजी वित्तीय क्षेत्र व्यवसायों के ऐसे चुनौती भरे और आवश्यक कायाकल्प की गति बढ़ाए और उसे समर्थन दे।
इस लेख को लिखने वाले हिरो मिज़ुनो इनोवेटिव फाइनेंस एंड सस्टेबनेबल इनवेस्टेमेंट के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत हैं।