नफरत आपको अंत में विनाश की ओर ही लेकर जाती है। यह बात जर्मनी के तानाशाह चांसलर और नाजी पार्टी के नेता हिटलर के बारे में भी कही जा सकती है। हिटलर को यहूदियों से इतनी नफरत थी कि वो उनका नाम और उनसे जुड़ी हर चीज धरती से मिटा देना चाहता था। एक ऐसा ही किस्सा जुड़ा है महान वैज्ञानिक आइंस्टीन से-
आइंस्टीन ही हत्या करने के लिए रख दिया गया था ईनाम
1932 में आइंस्टीन के अमेरिका चले जाने के बाद 1933 में जर्मनी पर हिटलर की तानाशाही शुरू हो गई। 10 मई 1933 को उसके प्रचारमंत्री योजेफ गोएबेल्स ने हर प्रकार के यहूदी साहित्य की सार्वजनिक होली जलाने का अभियान छेड़ दिया। आइंस्टीन की लिखी पुस्तकों की भी होली जली। ‘जर्मन राष्ट्र के शत्रुओं’ की एक सूची बनी, जिसमें उस व्यक्ति को पांच हजार डॉलर (आज के रुपे करेंसी के हिसाब से 3 लाख रुपए से ज्यादा) का पुरस्कार देने की घोषणा भी की गई, जो आइंस्टीन की हत्या करेगा।
कई थ्योरीज पर काम करते रहे आइंस्टीन
आइंस्टीन तब तक अमेरिका के प्रिन्स्टन शहर में बस गये थे। वहां वे गुरुत्वाकर्षण वाले अपने सामान्य सापेक्षता सिद्धांत के नियमों तथा विद्युत-चुम्बकत्व के नियमों के बीच मेल बैठाते हुए एक ‘समग्र क्षेत्र सिद्धांत’ (यूनिफ़ाइड फ़ील्ड थ्योरी) पर काम करने के पर जुट गए, इसके लिए वे किसी ‘ब्रह्मसूत्र’ जैसे एक ऐसे गणितीय समीकरण पर पहुंचना चाहते थे, जो दोनों को एक सूत्र में पिरोते हुए ब्रहमांड की सभी शक्तियों और अवस्थाओं की व्याख्या करने का मूलाधार बन सके। वे दुनिया को अलविदा कहने तक इस पर काम करते रहे, पर न तो उन्हें सफलता मिल पाई और न आज तक कोई दूसरा वैज्ञानिक यह काम कर पाया है।