ब्रिटेन के करीब 10 प्रतिशत वयस्कों ने कहा है कि वे कभी भी कोविड-19 रोधी टीका नहीं लगवाएंगे या जब तक संभव होगा, इससे बचेंगे। वैज्ञानिकों ने इस समूह को ‘टीका लगवाने से हिचकिचाने वाला समूह’ कहा है। उन्होंने कहा है कि जो लोग टीका लगवाने में हिचकिचा रहे हैं, उन्होंने कोविड-19 का टीका लगवाना है या नहीं, इस बारे में लंबे वक्त तक एवं बहुत अधिक सोचा है।
इन विचारों को कैसे बदला जा सकता है, इस बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि आदर्श तौर पर तो लोगों के साथ बैठकर, उन्हें सुनकर और फिर चर्चा कर ऐसा किया जाना चाहिए। वास्तव में जनस्वास्थ्य अभियानकर्ताओं के पास केवल सामूहिक संदेश उपलब्ध हैं, टीवी पर और सोशल मीडिया पर संदेश प्रसारित कर तथा होर्डिंग के माध्यम से जानकारियों को प्रचारित करना। ये व्यक्तिगत विश्वास की गहरी जड़ों को तोड़ने में कई बार उतने प्रभावी साबित नहीं होते हैं।
कुछ वर्षों में, ऑक्सफोर्ड एक्सप्लेनेशन्स, एटीट्यूड्स एंड नैरेटिव्स सर्वेज (ओशियन्स) की टीम ने इस दिशा में जवाब ढूंढने का प्रयास किया है। इस टीम ने टीका के खिलाफ या निर्णय नहीं लेने वाले लोगों के विचार जानकर उनकी हिचकिचाहट की मनोवैज्ञानिक व्याख्या करने का प्रयास किया है।
टीम ने पाया कि यह हिचकिचाहट कई मान्यताओं से जुड़ी हुई है जिसमें सबसे बड़ा कारण टीकाकरण के सामूहिक लाभ को लेकर संशय है। हिचकिचाने वाला व्यक्ति यह मान नहीं पाता कि टीका लगाने से सब पूरी तरह ठीक होगा। वह यह भी मानता है कि कोविड-19 से उसकी सेहत को बहुत ज्यादा खतरा नहीं है। और यह भी चिंता होती है कि टीका अप्रभावी होगा या नुकसानदेह होगा। कोविड-19 टीकों का तेजी से बनना इन चिंताओं को और बढ़ा देता है।
टीम ने पाया कि इन विचारों के पीछे अक्सर अविश्वास छिपा होता है। इसके लिए वैज्ञानिकों ने नकारात्मक विचारों को बदलने के लिए सामूहिक के बजाय निजी संदेश तैयार करने का प्रस्ताव दिया है। लोगों को बताया जाए कि टीका लगवाने से वायरस फैलने की संभावना कम होती है और अत्यधिक बीमार होने का खतरा भी कम होता है। उन्होंने कहा कि सामूहिक लाभ की बजाय व्यक्तिगत लाभ से परिचित कराया जाना चाहिए।