दिल्ली और हरियाणा के बीच सिंघु बॉर्डर पर पिछले करीब 40 दिनों से कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों के बीच दो चीजों की अब तक कमी नहीं हुई है, तो वह है उनके खाने-पीने का सामान और उनका जज्बा। इस संघर्ष के केंद्र में तो सड़क पर हो रहा प्रदर्शन है लेकिन इनको ताकत प्रदर्शन स्थल के पास बनी रसोई में जल रहे चूल्हों की आग से मिल रही है, जो कड़कड़ाती सर्दी में भी उनकी पेट की आग को शांत कर संघर्ष की ज्वाला को जलाए हुए है।
सिंघु बॉर्डर पर अधिकतर किसान पंजाब से आए हैं और केंद्र के तीन कानूनों के खिलाफ अपने नेताओं द्वारा किए गए ‘दिल्ली चलो के आह्वान पर गत वर्ष 26 नवंबर से जमे हुए हैं। प्रदर्शन स्थल पर दिनभर भाषणों का दौर, विरोध के तराने और ‘सडा हक, ऐथे रख और ‘जो बोले सो निहाल जैसे नारे आम हैं। वहीं दूसरी ओर लंगर में हजारों प्रदर्शनकारियों के लिए खाना बनता है जो केंद्र द्वारा मांगे माने जाने तक प्रदर्शन स्थल से हटने के मूड में नहीं है।
गुरदासपुर से आए 45 वर्षीय पलविंदर सिंह ने कहा कि वह एक दिन सिंघु बॉर्डर पर जत्थे के साथ बीच सड़क पर रसोई घर बनाने के लिए आए। उन्होंने बताया कि वह सुबह की शुरुआत स्नान के साथ करते हैं और इसके बाद प्रार्थना करते हैं। पलविंदर ने कहा, ‘क्रांति खाली पेट नहीं आ सकती। हम किसान हैं और हम अपने सिख गुरुओं के आदेश का पालन कर रहे हैं। यह गुरु का लंगर है और यह उनकी कृपा है, हम तो मात्र उनकी इच्छा की पूर्ति करने का माध्यम हैं। इसलिए यह हम यहां चूल्हा जलाए हुए हैं।’