बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के उस फैसले को सही ठहराया है कि जिसमें उसने कहा था कि पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित पदों पर अस्थायी नियुक्तियां बिना जाति वैधता प्रमाणपत्र के नहीं होंगी। कोर्ट ने सरकार के आवेदन के साथ जाति वैधता प्रमाणपत्र दाखिल करने के फैसले को बिल्कुल सही ठहराया है।
जस्टिस आरके देशपांडे और जस्टिस एएस चंद्रूकर ने नागपुर की रहने वाली चित्रा सोनारघडे़ की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने गढ़चिरौली जिला परिषद द्वारा निकाली भर्ती विज्ञापन के एक प्रावधान को चुनौती दी थी। इस प्रावधान के मुताबिक भर्ती विज्ञापन में आवेदकों को अपने आवेदन पत्र के साथ अपना जाति वैधता प्रमाणपत्र भी संलग्न करना था। भर्ती विज्ञापन में आवेदन के साथ जाति वैधता प्रमाणपत्र संलग्न करने की जरूरी शर्त रखी गई थी।
याचिकाकर्ता ने कोर्ट में आवेदन पत्र के साथ जाति प्रमाण पत्र संलग्न करने के प्रावधान को चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया था कि उसे जाति वैधता प्रमाणपत्र पत्र दाखिल किए बिना आवेदन का अधिकार है। जाति वैधता प्रमाणपत्र दिए बिना रिक्त पद के लिए उसकी उम्मीदवारी पर विचार किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता ने इसके पीछे महाराष्ट्र एससी, एसटी, डीटी, एनटी, ओबीसी और एसबीसी (रेगुलरेशन ऑफ इश्यूएंस एंड वेरिफिकेशन ऑफ) कास्ट सर्टिफिकेशन एक्ट 2000 का हवाला दिया जिसके मुताबिक नियोक्ता अपने कर्मचारियों के जाति प्रमाणपत्र वेरिफिकेशन और वैधता प्रमाणपत्र जारी किए जाने के लिए जांच कमिटी को भेजता है।
कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका को खारिज कर दिया कि किसी भी व्यक्ति को आरक्षित पदों पर तब तक नियुक्त होने का अधिकार नहीं जब तक वह उस पर अपनी योग्यता साबित नहीं कर देता। इन नियमों का उल्लंघन करने से योग्य उम्मीदवारों के अधिकारों का हनन होगा।