छोटी सी मुलाक़ात से लेकर अरबों डॉलर की कारोबारी डील पक्का करने की प्रक्रिया में एक छोटा सा दुनियावी तौर-तरीक़ा भी शामिल होता है. आप उन अजनबियों से भी हाथ मिलाते हैं, जिनसे शायद ही आपकी दोबारा मुलाक़ात हो और उनसे भी जिनके साथ आपने अरबों डॉलर की बिज़नेस डील साइन की हो.
हाथ मिलाने की शुरुआत कहां से हुई, इस बारे में अलग-अलग विचार हैं. एक मत के मुताबिक़ इसकी शुरुआत ग्रीस में शांति के प्रतीक के तौर पर शुरू हुई होगी. इसका मतलब यह रहा होगा कि जब दो लोग हाथ मिला रहे हैं तो यह इस बात की गारंटी है कि उनके पास (हाथ में) कोई हथियार नहीं है. या मध्यकालीन यूरोप में योद्धाओं के बीच इसकी शुरुआत इसलिए हुई होगी कि इसके ज़रिये वे दुश्मन के हाथ में छिपे हथियारों को हिला कर गिरा देते होंगे.
हाथ मिलाने के प्रचलन को बढ़ावा देने का श्रेय क्वैकर्स (मूल रूप से ईसाई धर्म समूह से जुड़े सदस्य) को भी जाता है. किसी के सामने झुक कर अभिवादन करने की तुलना में वे इसे ज़्यादा बराबरी वाला व्यवहार मानते थे.
ऑस्टिन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्सास में साइकोलॉजी की प्रोफ़ेसर क्रिस्टिन लेगार कहती हैं, “हाथ मिलाना लोगों के बीच संपर्क की एक मुद्रा है. यह एक प्रतीक है कि मनुष्य कैसे एक सामाजिक और स्पर्श की ओर झुकाव रखने वाले प्राणी के तौर पर विकसित हुआ.”
जिस शारीरिक मुद्रा (हाथ मिलाने का) का इतिहास हज़ारों वर्ष पुराना है, उस पर रोक लगाना इतना आसान नहीं होगा. प्रोफ़ेसर लेगार कहती हैं, “मनुष्य के लिए स्पर्श कितना महत्वपूर्ण है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि लोगों ने अब हाथ मिलाने के बजाय कोहनियों को आपस में सटाना शुरू किया. यानी भले ही हाथ न मिलाएं लेकिन कोहनियों के ज़रिये स्पर्श का अहसास बरक़रार रहे.”
दरअसल स्पर्श करने और करवाने की यह जैविक इच्छा हर प्राणी में पाई जाती है. 1960 में अमेरिकी साइकोलॉजिस्ट हैरी हर्लो ने दिखाया कि युवा रीसस बंदरों के स्पर्श और प्रेम के विकास के लिए यह कितना ज़रूरी था.
जानवरों में स्पर्श की तरह-तरह की भंगिमाएं देखने को मिलती हैं. चिंपाज़ी हथेलियों को छूते हैं, गले लगाते हैं और अभिवादन के तौर पर एक दूसरे का चुंबन लेते हैं. जिराफ़ अपनी गरदन दो मीटर लंबाई तक ले जा सकते हैं. उनकी इस शारीरिक हरकत को नेकिंग (Necking) कहते हैं. नर जिराफ़ आपस में गर्दन उलझा और रगड़ कर एक दूसरे की ताक़त का जायज़ा लेते हैं. इसके ज़रिये वे एक दूसरे पर अपना प्रभुत्व भी जमाने की कोशिश करते हैं .
दुनिया में लोगों के बीच अभिवादन के कई तरीक़े हैं. इसमें आप संक्रमण के लिए ख़तरा माने जा रहे शारीरिक स्पर्श से बच सकते हैं. हिंदू संस्कृति में अभिवादन नमस्ते के ज़रिये होता है. इसमें आप अपनी हथेलियों को मिला कर अभिवादन करते वक़्त थोड़ा सा झुकते हैं.
समोआ से भी अभिवादन होता है. इसमें किसी व्यक्ति के सामने अपनी आंख की भौहें थोड़ी ऊपर कर और एक चौड़ी सी मुस्कान बिखेर कर उसका अभिवादन किया जाता है.
मुस्लिम देशों में जिसे आप छू नहीं सकते, उसका दिल पर हाथ रख कर अभिवादन करते हैं. हवाईयन शाका साइन, भी अब अभिवादन का तरीक़ा बन गया है. समुद्र की तेज़ लहरों में सर्फ़ करने वाले अमरीकी सर्फ़रों ने इसे अपना कर इसे ख़ासा लोकप्रिय बना दिया है. हवाईयन (हवाई द्वीप से जुड़े) शाका साइन में हाथ की बीच की तीन अंगुलियां मोड़ ली जाती हैं और हाथ मिलाते वक़्त अंगूठे और सबसे छोटी अंगुली को आगे किया जाता है.
शारीरिक स्पर्श हमेशा इतना महत्वपूर्ण नहीं रहा है. 20वीं सदी के मध्य में कई मनोविज्ञानी यह मानते थे कि बच्चों के प्रति अपना प्रेम प्रदर्शित करना सिर्फ़ एक भावनात्मक मुद्रा है. इसका कोई वास्तविक उद्देश्य नहीं है. यहां तक कि वे तो यह चेतावनी भी देते थे कि इस तरह प्रेम दिखाने से बीमारियां फैल सकती हैं और इससे वयस्क होने पर मनौवैज्ञानिक परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है.
लंदन स्कूल ऑफ़ हाइजिन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन में बिहेवियरल साइंटिस्ट वाल कर्टिस अपनी किताब’डोंट लुक, डोंट टच’ में लिखती हैं कि हाथ मिलाना और गालों में चुंबन लंबे समय तक अभिवादन के तरीक़ों के तौर पर इसलिए बरक़रार हैं क्योंकि इनसे यह संकेत जाता है कि सामने वाला शख्स इतना विश्वसनीय है कि वह रोगाणुओं को साझा कर सकता है. दरअसल तौर-तरीक़ों को अपनाए जाने और छोड़ने का इतिहास जनस्वास्थ्य से जुड़ी चिंताओं पर आधारित रहा है.