कोरोना वायरसः लॉकडाउन में ज़िंदा रहने के लिए संघर्ष करते बच्चे

कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए अचानक लगाए गए 21 दिनों के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन ने दसियों लाख बच्चों की ज़िंदगी में अफ़रा-तफ़री मचा दी है.

दसियों हज़ार बच्चे रोज़ाना हेल्पलाइन पर कॉल करके मदद मांग रहे हैं जबकि हज़ारों को भूखे पेट सोना पड़ रहा है. महामारी रोकने के लिए पूरा देश बंद है.

भारत में 47.2 करोड़ बच्चे हैं और दुनिया में बच्चों की सबसे बड़ी आबादी भी भारत में ही हैं. सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि ग़रीब परिवारों के चार करोड़ बच्चे सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं.

इनमें वो बच्चे भी शामिल हैं जो ग्रामीण इलाक़ों में खेतों में काम करते हैं और वो भी जो शहरों में कूड़ा बीनने का काम करते हैं. चौराहों पर गुब्बारे, पेन, पेंसिल बेचने वाले या भीख मांगने वाले बच्चे सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं.

बाल मज़दूरों और सड़क पर रहने वालों बच्चों के बीच काम करने वाले ग़ैर सरकारी संगठन चेतना के निदेशक संजय गुप्ता कहते हैं कि सबसे ज़्यादा वो बच्चे प्रभावित हैं जो शहरों में सड़कों पर, फ़्लाइओवरों के नीचे और तंग गलियों में रहते थे.

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