साल 2014 और साल 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने बहुमत से सरकार का गठन किया है. साल 2023 के आरंभ में तीन राज्यों त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय में चुनाव हुए. भाजपा ने पूर्वोत्तर के इन राज्यों में अप्रत्याशित रूप से बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया और कहीं अकेले तो कहीं सहयोगियों के साथ मिलकर सरकार बनाने में सफल रही है. कर्नाटक में चुनाव का ऐलान हो गया है. इस साल के अंत तक मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना विधानसभा के चुनाव होंगे. इन राज्यों के चुनाव परिणाम का असर निश्चित रूप से अगले लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा, लेकिन जैसी राजनीतिक परिस्थिति बन रही है. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और ओडिशा में भाजपा को करारी टक्कर मिल सकती है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी और आम आदमी पार्टी के प्रमुख और आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने पहले से मोदी सरकार के खिलाफ विरोधी दलों को एकजुट करने की कवायद शुरू कर दी है. अरविंद केजरीवाल ने ‘मोदी हटाओ, देश बचाओ’ का नारा दिया है, तो ममता बनर्जी ने भी मोदी सरकार के खिलाफ धरना देकर शंखनाद का ऐलान कर चुकी हैं।
लोकसभा के बाद विधानसभा और निकाय चुनाव में बीजेपी को मिली पराजय
पश्चिम बंगाल, ओडिशा और दिल्ली ये तीन राज्य हैं. इन तीनों राज्यों में पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा था. पश्चिम बंगाल की कुल 42 लोकसभा सीटों में भाजपा ने अप्रत्याशित रूप से 18 सीटों पर जीत हासिल कर ममता बनर्जी को चुनौती दी थी. हालांकि साल 2021 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी सरकार को चुनौती दी, लेकिन मात्र 77 सीटों से संतोष करना पड़ा. उसी तरह से ओडिशा लोकसभा चुनाव की कुल 21 में से भाजपा 8 सीटों पर, 12 बीजेडी और 1 पर कांग्रेस कब्जा करने में सफल रही थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में भाजपा विरोधी दल भले ही रही, लेकिन चौथी बार नवीन पटनायक की ही सरकार बनी. इसी तरह से दिल्ली में 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी 7 सीटों पर कब्जा कर लिया, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव और दिल्ली नगर निगम के चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ा है।
लोकसभा चुनाव में ममता, केजरीवाल और पटनायक से मिलेगी बीजेपी को चुनौती
भाजपा ने अपनी कार्यकारिणी की बैठक में बंगाल फतह का लक्ष्य रखा है. इसी तरह से ओडिशा में नवीन पटनायक और अरविंद केजरीवाल से पहले दिल्ली, फिर पंजाब में और अब इस साल होने वाले मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के चुनाव में बीजेपी को चुनौती मिलने की संभावना है, लेकिन यह चुनौती केवल विधानसभा चुनाव तक ही सीमिति नहीं रहेगी. लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी के लिए यह चुनौती बरकरार रहेगी. बंगाल में 42 लोकसभा सीटों में से 18 सीटों पर जीत हासिल करने वाली भाजपा को इस बार बंगाल में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि विधानसभा चुनाव के बाद चाहे नगरपालिका के चुनाव हों या फिर विधानसभा उपचुनाव हों, भाजपा के उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहे हैं. ममता बनर्जी ने 42 में से 42 सीटों पर जीत का और भाजपा ने 24 सीटों पर जीत का लक्ष्य रखा है. दिल्ली और बंगाल को छोड़कर ओड़िशा एक ऐसा राज्य हैं, जहां साल 2024 में एक साथ लोकसभा और विधानसभा के चुनाव होंगे. भाजपा लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अपनी पूरी ताकत लगा रही है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ओडिशा विधानसभा में 120 सीटों पर जीत का टारगेट रखा है. मोहन सामल को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है, तो केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ओडिशा की राजनीति में सुपर एक्टिव नजर आ रहे हैं।
अलग-अलग चुनावों में अपने विकल्प बदलते रहे हैं मतदाता
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक पार्थ मुखोपाध्याय कहते हैं कि यह सही है कि बंगाल, ओडिशा और दिल्ली के विधानसभा या नगरपालिका के चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है, लेकिन लोकसभा के चुनाव में ऐसा ही प्रदर्शन होगा. यह पूरी तरह से नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि हाल में कुछ चुनावों से देखा जा रहा है कि विधानसभा चुनाव या नगरपालिका चुनाव में क्षेत्रीय पार्टी को वोट करने वाली जनता लोकसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में मतदान करती हैं. भारतीय मतदाता राजनीतिक रूप से काफी चतुर हैं और अलग-अलग चुनावों में अपने मतदान विकल्पों का अलग-अलग तरीके से प्रयोग करते रहे हैं. इसके पहले भी इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के शासनकाल में बंगाल में ज्योति बसु और ओडिशा में बीजू पटनायक को जनता का पूरा समर्थन मिला था. वह परंपरा अभी भी बनी हुई है. ऐसे में यह सही है कि इन राज्यों में भाजपा को चुनौती मिलेगी, लेकिन संभव है कि उन्हें इन राज्यों से जितनी अपेक्षा की जा रही है. उससे अधिक सीटें मिलें, क्योंकि लोगों के मन में यह धरना है कि तृणमूल, बीजेपी या आप अकेले दल्ली में सरकार नहीं बना सकते हैं और इन राज्यों से कांग्रेस से भी उनका मुकाबला है. ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय पार्टी के रूप में लोग भाजपा को प्राथमिकता देते हैं और यह स्थिति तब तक रहेगी, जब तक कोई विकल्प तैयार नहीं हो जाता है. वैसे इतना तय है कि इन राज्यों में भाजपा को अपनी पूरी ताकत लगाने पड़ेगी और इन्हीं राज्यों से उसे जबरदस्त टक्कर भी मिलेगी, लेकिन राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है. समय और परिस्थिति के अनुसार स्थितियां बदल भी सकती हैं और समीकरण भी बदल सकते हैं।