भारतीय कारोबारियों में अपने दम पर दुनियाभर में लोहा मनवाने वालों में एक वेदांता ग्रुप के अनिल अग्रवाल भी हैं. कभी स्क्रैप से जुड़ा काम करने वाले अनिल अग्रवाल इन दिनों एक बड़ी दिक्कत का सामना कर रहे हैं. उनकी कंपनी पर 2 अरब डॉलर (करीब 16,470 करोड़ रुपये) का कर्ज है और इससे निपटने के लिए वह लंबे समय से जद्दोजहद कर रहे हैं. आखिर कैसे पार पाएंगे अनिल अग्रवाल।
अपने करियर के दौरान अनिल अग्रवाल की पहचान एक ऐसे उद्योगपति के तौर पर बनी है, जो दशकों से हर परिस्थिति में खुद को साबित करते आए हैं. उनका कारोबार ऐसा है कि उसका सीधा प्रतिद्वंदी भी कोई भी नहीं है. इस बार उनके पास नकदी का संकट है, सरकार के साथ भी खटपट चल रही है और कंपनी के एक्सपेंशन में दिक्कत पेश आ रही है।
2024 तक चुकाना है 16,470 करोड़ रुपये
वेदांता ग्रुप की कंपनी वेदांता रिसोर्सेज को 2024 में 2 अरब डॉलर यानी 16,470 करोड़ रुपये के बांड्स का पेमेंट करना है. इसमें से आधे से ज्यादा राशि जनवरी में ही चुकानी है. इस वजह से उनकी कंपनी को लेकर रिस्क रेटिंग कम हुई है और उन्हें पैसे जुटाने में भी दिक्कत आ रही है।
वेदांता ग्रुप की ये समस्या ऐसे समय सामने आई है, जब भारत के एक और कारोबारी घराने ‘अडानी ग्रुप’ को भी फंड जुटाने में प्रॉब्लम हो रही है. शॉर्ट सेलर कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद शुरू हुई इस दिक्कत का असर पूरे इंडियन कॉरपोरेट्स पर पड़ा है. और बिजनेसेस को लेकर स्क्रूटनी भी बढ़ी है।
तीन साल के अंदर चुकाना है 4.7 अरब डॉलर
वेदांता ग्रुप की दिक्कत 2024 तक 2 अरब डॉलर का लोन चुकाना भर नहीं है. बल्कि अगले तीन वित्त वर्ष में वेदांता रिसोर्सेज को कुल 4.7 अरब डॉलर चुकाने हैं. वहीं वेदांता के निवेशकों की चिंता इसे लेकर है कि क्या अनिल अग्रवाल अपनी भारतीय सब्सिडियरी कंपनियों में हिस्सेदारी बढ़ाकर या शेयरों की खरीद-फरोख्त कर रकम जुटा पाएंगे।
दरअसल हुआ कुछ यूं कि वेदांता ग्रुप ने सरकारी कंपनी हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड में करीब 20 साल पहले हिस्सेदारी खरीदनी शुरू की थी. वेदांता लिमिटेड के पास हिंदुस्तान जिंक की 65 प्रतिशत हस्सेदारी है. इस कंपनी के पास भारी मात्रा में कैश रिजर्व है।
सरकार ने लगाया अनिल अग्रवाल के प्लान पर ब्रेक
अब वेदांता ग्रुप चाहता है कि वह अपनी मॉरीशस की टीएचएल जिंक लिमिटेड को पूरी तरह से हिंदुस्तान जिंक को बेच देगी. इससे हिंदुस्तान जिंक के पास पड़ा रुपया वेदांता के खाते में ट्रांसफर हो जाता, और अगले 18 महीनों के दौरान वेदांता लिमिटेड को 3 अरब डॉलर (करीब 24,848 करोड़ रुपये) हासिल होते. यानी पैसे की कोई चिंता ही नहीं।
इसी वेदांता लिमिटेड की 70 प्रतिशत हिस्सेदारी वेदांता रिसोर्सेज के पास है. यानी आराम से 2 अरब डॉलर का कर्ज चुकाने लायक पैसे आ जाते. लेकिन इस पूरे आइडिया को भारत सरकार की रोक ने फेल कर दिया, क्योंकि हिंदुस्तान जिंक में भारत सरकार अब भी पार्टनर है।