Goa 30 साल की कानूनी जंग के बाद आया फैसला, 80 साल की महिला को मिली पिता की संपत्ति

देश में ऐसे मुकदमों की कोई कमी नहीं है जो दशकों से अपने मामले में कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं. कई केस तो 30 साल से भी ज्यादा पुराने हैं, इनमें से एक केस का फैसला आ गया है, जिसमें संपत्ति विवाद में जीत हासिल करने वाली महिला की उम्र 80 साल है. बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा बेंच ने 3 दशक पुराने पारिवारिक संपत्ति विवाद में फैसला सुनाते हुए मडगांव की महिला को पिता की संपत्ति पर मालिकाना हक दे दिया।

बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा बेंच के पास पारिवारिक संपत्ति को लेकर विवाद था, जिसमें कहा गया कि भाइयों की ओर से पिता की संपत्ति हड़पने के लिए कथित तौर पर एक बहन को इससे बेदखल कर दिया गया. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में 1990 में तैयार की गई ट्रांसफर डीड को रद्द कर दिया क्योंकि इसे अपीलकर्ता की सहमति के बिना तैयार किया गया था।

बेटियों के अधिकार खत्म नहीं हो सकते

टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, 16 मार्च को हाई कोर्ट की ओर से दिए गए फैसले में जस्टिस महेश सोनक ने कहा, “सिर्फ इसलिए कि बहनों में से एक बहन ने भाइयों का पक्ष ले लिया तो यह पारिवार का मुद्दा नहीं है और इसका विधिवत तरीके से निपटारा हो गया.” जस्टिस सोनक ने कहा कि इस बात के कोई प्रमाण नहीं हैं कि बेटियों के घर को पर्याप्त मात्रा में दहेज दिया जाता है, हालांकि बेटियों को दहेज दिया जाता है. लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि इन बेटियों के पास परिवार के संपत्ति में किसी तरह का कोई अधिकार नहीं है. हाई कोर्ट ने अपने आदेश में आगे कहा कि बेटियों के अधिकार इस आधार पर खत्म नहीं किए जा सकते।

इस संपत्ति विवाद में अपीलकर्ता की ओर से साल 1994 में एक विशेष दीवानी मुकदमा दायर किया गया कि 8 सितंबर, 1990 के ट्रांसफर डीड (Transfer Deed) यानी बिक्रीनामा को रद्द घोषित कर दिया जाए. इस पर महिला के भाई भी कोर्ट चले गए. भाइयों ने कोर्ट में संपत्ति के पक्ष में कहा कि उनकी चार बहनें हैं और इनकी शादी के दौरान काफी दहेज दिया गया थ।

पिता की मौत तक संपत्ति का नहीं हुआ था बंटवारा

उन्होंने यह भी बताया कि उनके पिता और उनके बीच पार्टनरशिप थी. हमारे पास जो दुकान और दुकान के नीचे की संपत्ति है वह सब इसी पार्टनरशिप के तहत बनाई गई. भाइयों ने यह भी तर्क दिया कि इस संपत्ति पर न तो अपील करने वाली बहन और न ही शेष तीनों बहनों के पास कोई अधिकार है।

अपीलकर्ता महिला के वकील क्लियोफाटो अल्मेडा कोटिन्हो ने कोर्ट में दलील दी कि महिला के पिता की मृत्यु होने तक उनकी संपत्ति को लेकर इन्वेंट्री के जरिए न ही कोई लिस्ट बनाई गई और न ही उसका बंटवारा किया गया।

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