दुनिया की आंखों में धूल झोंक रहा अमेरिका? मंगल ग्रह पर भेजे गए रोवर की खुली पोल

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा समेत दुनियाभर के वैज्ञानिक लाल ग्रह कहे जाने वाले मंगल पर जीवन की खोज में जुटे हैं. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि मंगल ग्रह पर एलियन जैसे जीवन या फिर उससे जुड़े संकेत मिल सकते हैं. इसके लिए नासा ने जुलाई 2020 में पर्सीवरेंस रोबोटिक रोवर को मंगल पर भेजा है. पिछले करीब ढाई साल से यह रोबोटिक रोवर्स मंगल की सतह घूम रहा है, लेकिन अब इससे जुड़ी एक निराश करने वाली खबर सामने आई है।

‘नेचर कम्युनिकेशंस’ में आज प्रकाशित नई रिसर्च से पता चला है कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के रोवर में जिन उपकरणों को लगाया गया है वो वास्तव में लाल ग्रह पर जीवन के प्रमाण को खोजने उपयुक्त नहीं हैं. उनकी भी अपनी एक लिमिटेशन है. रोवर्स में लगाए गए उपकरणों की जांच की अगुवाई अरमांडो अज़ुआ-बस्टोस ने की है।

रोवर्स के उपकरण में सीमित क्षमता

अजुआ बस्टोस और उनके सहयोगियों ने अपनी रिसर्च में पाया कि रोवर्स में इस्तेमाल किए गए उपकरणों की जीवन से जुड़ी जानकारी हासिल करने की एक सीमित क्षमता है. रिसर्चरों की टीम ने कहा कि रोवर लाल ग्रह पर मिनरल कंपोनेंट का पता लगाने में तो सक्षम है लेकिन वो हमेशा जैविक अणुओं का पता लगाने में सक्षम नहीं है।

जैविक और भौतिक सीमाओं को परिभाषित करने की जरूरत

बस्टोस ने कहा है कि मंगल ग्रह पर आमतौर पर ठंड ज्यादा रहती है. ऐसी परिस्थितियों में वहां जीवन का प्रमाण ढूंढना काफी चुनौतीपूर्ण है. सबसे पहले हमें वातावरण में मौजूदा जीवन की जैविक और भौतिक सीमाओं को परिभाषित करने की जरूरत है. इसके बाद हमें जीवन की पहचान करने के लिए उपकरण को विकसित करने की जरूरत है. इसमें जैविक अणु जैसे लिपिड, न्यूक्लिक एसिड और प्रोटीन शामिल हैं।

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