विश्व महिला दिवस: संघर्ष की मिसाल बनी गीता
दिल्ली देश का दूसरा राज्य है, जहां अब बच्चों के जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए सिर्फ पिता के जाति प्रमाण पत्र की अनिवार्यता नहीं है। मां भी अपने जाति प्रमाण पत्र के आधार पर बच्चे का प्रमाण पत्र बनवा सकती है। यह सुनकर अच्छा जरूर लग रहा है, लेकिन नीतिगत बदलाव की लड़ाई बहुत लंबी है। यह लड़ाई करोल बाग के बापा नगर की रहने वाली गीता देवी ने अकेली लड़ी है। गीता ने बेटे के वजीफे के लिए यह संघर्ष शुरू किया। तीन साल तक लंबे संघर्ष के बाद सरकार को नीतिगत बदलाव करना ही पड़ा। अकेले अपने बच्चों की परवरिश करने वाली
मांओं के लिए दरवाजे खोल दिए। गीता वैसे मूलरूप से प्रयागराज की रहने वाली हैं। कम उम्र में शादी हुई तो पहले पति की मौत हो गई। परिवार ने दूसरी शादी की। गीता बताती है कि वह शादी लगातार दहेज के मांग के चलते लंबे समय तक नहीं चल पाई। वह अपने मायके वालों की सहायता से बेटे के साथ दिल्ली के करोल बाग में आकर रहने लगी। वह बेटे को पढ़ाना चाहती थीं, लेकिन आर्थिक हालात इसकी मंजूरी नहीं दे रहे थे। तभी गीता को पता चला कि अनुसूचित जाति के बच्चों को सरकार से वजीफा मिलता है। वजीफे के लिए जाति प्रमाण पत्र जरूरी है। विधायक विशेष रवि ने उनकी बात सुनी। उसके बाद अकेली मां जो बच्चे की परवरिश कर रही है उसके जाति प्रमाण पत्र का मुद्दा
दिल्ली की विधानसभा में उठा। आखिरकार गीता के तीन साल के लंबे संघर्ष का अंत हुआ। गीता को बीते 5 जनवरी 2022 को उनके जाति प्रमाण पत्र के आधार पर बच्चे को जाति प्रमाण पत्र जारी हुआ। सरकार को गीता की कहानी के बाद सभी के लिए यह दरवाजे खोल दिए। नीतिगत बदलाव भी किया गया अभी तक सरकार को ऐसे 500 से अधिक आवेदन मिल चुके हैं। गीता खुश हैं कि उनके बच्चे को अब वजीफा मिल रहा है।वजीफा पाने की कोशिश ने गीता की लड़ाई यहीं से शुरू कर दी। गीता बताती हैं कि वह झंडेवालान स्थित एसडीएम कार्यालय गईं तो बताया गया कि पिता का जाति प्रमाण पत्र चाहिए। उन्होंने हार नहीं मानी और सभी दरवाजे खटखटाए। आंसू भी बहाएं पर सफलता नहीं मिली, तभी किसी ने विधायक के पास जाने को कहा।