जया एकादशी 2022 कब है? जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व

माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं। इस साल जया एकादशी व्रत 12 फरवरी, शनिवार को है। पद्म पुराण में जया एकादशी का महत्व बताया है। पद्म पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद जीव को अपने कर्मों के अनुसार उसके अदृश्य शरीर में जाना होता है जिसे भूत पिशाच की योनी कहा जाता है। जया एकादशी को इस योनी से मुक्ति दिलाने वाला कहा जाता है।

जया एकादशी महत्व- 

शास्त्रों में बताया गया है कि जो व्यक्ति इस एकादशी व्रत को करता है उसे कष्टदायी पिशाच योनी से मुक्ति मिल जाती है और उन्हें इस योनी में नहीं जाना पड़ता है।

माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 11 फरवरी को 1 बजकर 53 मिनट से प्रारंभ होगी, जो कि 12 फरवरी की शाम 04 बजकर 28 मिनट पर समाप्त होगी। व्रत के पारण का समय 13 फरवरी को सुबह 09 बजकर 30 मिनट तक रहेगा।

एक बार अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से प्रश्न करते है — “हे भगवान ! अब कृपा कर आप मुझे माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या महत्त्व है विस्तारपूर्वक बताएं। माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी में किस देवता की पूजा करनी चाहिए तथा इस एकादशी व्रत की कथा क्या है ? उसके करने से किस फल की प्राप्ति होती है शीघ्र ही बताएं?”

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं – “हे अर्जुन ! माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं। इस दिन उपवास रखने से मनुष्य भूत, प्रेत, पिशाच आदि की योनि से छुटकारा मिल जाता है। इस दिन विधिपूर्वक उपवास व्रत करना चाहिए। मैं अब तुमसे जया एकादशी व्रत की कथा कहता हूं।”

एक समय की बात है नंदन वन में उत्सव का आयोजन हो रहा था। देवता, ऋषि मुनि  सभी उस उत्सव में मौजूद थे। उस समय गंधर्व गा रहे थे तथा  गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थी। इन्हीं गंधर्वों में एक माल्यवान नाम का गंधर्व भी था जो बहुत ही सुरीला गाता था। जितनी सुरीली उसकी आवाज़ थी उतना ही रूपवान भी था। गंधर्व कन्याओं में एक पुष्यवती नामक नृत्यांगना भी थी।

पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या ने माल्यवान नामक गंधर्व को देखते ही उस पर आसक्त हो गई तथा अपने हाव-भाव से उसे रिझाने का प्रयास करने लगी। माल्यवान भी उस पुष्पवती पर आसक्त होकर अपने गायन का सुर-ताल भूल गया। इससे संगीत की लय टूट गई और संगीत का सारा आनंद बिगड़ गया।

सभा में उपस्थित देवगणों को यह अच्छा नहीं लगा। माल्यवान के इस कृत्य से इंद्र भगवान नाराज होकर उन्हें श्राप देते हैं कि स्वर्ग से वंचित होकर मृत्यु लोक में पिशाचों सा जीवन भोगो क्योंकि तुमने संगीत जैसी पवित्र साधना का तो अपमान किया ही है साथ ही सभा में उपस्थित गुरुजनों का भी अपमान किया है। इंद्रा भगवान के शाप के प्रभाव से दोनों पृथिवी पर हिमालय पर्वत के जंगल में  पिशाची जीवन व्यतीत करने लगे।

पिशाची जीवन बहुत ही कष्टदायक था। दोनों बहुत दुखी थे। एक बार माघ के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी के दिन संयोगवश दोनों ने कुछ भी भोजन नहीं किया और न ही कोई पाप कर्म किया। उस दिन मात्र फल-फूल खाकर ही पूरा दिन व्यतीत किया। भूख से व्याकुल तथा ठंड के कारण बड़े ही  दुःख के साथ पीपल वृक्ष के नीचे  इन दोनों ने एक-दूसरे से सटकर बड़ी कठिनता पूर्वक पूरी रात काटी। पूरी रात अपने द्वारा किये गए कृत्य पर पश्चाताप भी करते रहे और भविष्य में इस प्रकार के भूल न करने की भी ठान लिया था सुबह होते ही दोनों की मृत्यु हो गई।

अंजाने में ही सही उन्होंने एकादशी का उपवास किया था। भगवान के नाम का जागरण भी हो चुका था परिणामस्वरूप प्रभु की कृपा से इनकी पिशाच योनि से मुक्ति हो गई और पुनः अपनी अत्यंत सुंदर अप्सरा और गंधर्व की देह धारण करके तथा सुंदर वस्त्रों तथा आभूषणों से अलंकृत होकर दोनों स्वर्ग लोक को चले गए।

देवराज इंद्र उन्हें स्वर्ग में देखकर आश्चर्यचकित हुए और पूछा कि वे श्राप से कैसे मुक्त हुए। तब उन्होंने बताया कि भगवान विष्णु की उन पर कृपा हुई। हमसे अंजाने में माघ शुक्ल एकादशी यानि जया एकादशी का उपवास हो गया जिसके प्रताप से भगवान विष्णु ने हमें पिशाची जीवन से मुक्त किया। कुछ इस तरह से जया एकादशी का व्रत करने से भक्त को पूर्व में किये गए पाप कर्मों से मुक्ति मिलती है।

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