अधिक गतिशील होने के लिए हमें पहले हर क्रियाशीलता से मुक्त होना पड़ेगा। चाहे वे क्रियाएं हम जागते समय अपनी इच्छानुसार करते हैं या सोते समय निश्चेष्ट रहते हुए। ध्यान यही कुछ न करने की अवस्था है। भूत के स्मरण, भविष्य की योजना से मुक्त होकर पूर्ण विश्राम की स्थिति ध्यान है।
सच्ची मुक्ति भूतकाल और भविष्यकाल से मुक्त होना है। यदि तुम किसी इच्छा, मानसिक उद्वेग या अशांति के साथ सोने जाते हो, तो तुम्हें गहरी नींद नहीं आती। जितना अधिक तुम बेचैन रहते हो, तुम्हारे लिए सोना उतना ही कठिन हो जाता है। यदि तुम सोने से पहले सब कुछ छोड़ दो, तभी तुम विश्राम कर पाओगे।ऐसे ही जब तुम ध्यान के लिए बैठना चाहते हो, तो हर चीज को छोड़ दो। तुम जिस भी आनंद का जीवन में अनुभव करते हो, वह तुम्हारे अंतरतम की गहराइयों से आता है। यह तभी आता है, जब तुम अपनी सारी पकड़ छोड़ देते हो और स्थिर हो जाते हो। यही ध्यान है। वास्तव में ध्यान कोई क्रिया नहीं है; यह कुछ भी न करने की कला है। ध्यान की विश्रांति गहरी से गहरी नींद से भी गहरी है, क्योंकि ध्यान में तुम सभी इच्छाओं से मुक्त हो जाते हो। जब तुम गहरे ध्यान से बाहर आते हो, तब तुम बहुत गतिशील होते हो और बेहतर काम कर सकते हो। तुम्हारा विश्राम जितना गहरा होगा, तुम्हारे कर्म उतने ही अधिक गतिशील रहेंगे।
ध्यान भूतकाल तथा भूतकाल की घटनाओं के सभी क्रोध या तनाव से मुक्ति पाना है और भविष्य की सभी योजनाओं और कामनाओं का त्याग करना है। योजना बनाना तुमको अपने अंदर गहरी डुबकी लगाने से रोकता है। ध्यान इस क्षण को पूर्णत: स्वीकार करना है और प्रत्येक क्षण को पूरी गहराई के साथ जीना है। केवल इस बात की समझ और कुछ दिनों के निरंतर ध्यान का अभ्यास तुम्हारे जीवन की गुणवत्ता को बदल सकता है।
जीवन चेतना की तीन अवस्थाओं- जाग्रत, सुषुप्ति और स्वप्न का सबसे अच्छा उदाहरण यह प्रकृति है। प्रकृति सोती है, जागती है और सपने देखती है! अस्तित्व में यह एक शानदार स्तर पर हो रहा है और मानव शरीर में एक अलग स्तर पर।
जागृति और सुषुप्ति सूर्योदय और अंधकार की भांति है। स्वप्न की अवस्था उन दोनों के बीच में गोधूलि बेला के समान है और ध्यान अंतरिक्ष में एक उड़ान की तरह से है, जहां पर कोई भी सूर्योदय, सूर्यास्त नहीं है, कुछ भी नहीं है।
ध्यान सभी इचछाओं से मुक्त होने का साधन है, और इस प्रकार परमात्मा के निकट पहुंचने का मार्ग है।