न रुके वैक्सीन की सप्लाई, सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक को केंद्र सरकार ने दे दिया 2 महीने का 100% एडवांस

भारत में कोरोना की बेकाबू रफ्तार में सबसे बड़ा हथियार जल्दी से जल्दी ज्यादा लोगों […]

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उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की समीक्षा अधिकारी/ सहायक समीक्षा अधिकारी (आरओ/एआरओ) परीक्षा 2021 के […]

Surat SMC recruitment 2021: 1376 स्टाफ नर्स और दूसरे पदों के लिए 20 अप्रैल से पहले करें आवेदन

सूरत म्यूनिसिपल कोर्पोरेशन ने सीनियर रेजिडेंट, स्टाफ नर्स, वार्ड ब्वॉय, मेडिकल ऑफिसर, रेडियोग्राफिक टेक्नीशियन और […]

कोरोना की वजह से सामान्य संक्रमण में इस्तेमाल की जाने वाली एंटीबायोटिक दवाएं बेअसर साबित हो रही हैं। विश्व स्वस्थ्य संगठन की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि सामान्य संक्रमणों के नए उपचारों के अभाव के चलते लोगों को दुनिया के सबसे खतरनाक बैक्टीरिया के जोखिम का सामना करना पड़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की वार्षिक एंटी माइक्रोबियल पाइपलाइन रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, इस समय जो 43 एंटी बायोटिक्स दवाएं तैयार की जा रही हैं, उनमें से एक भी दवा, औषधि-प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर चुके 13 बैक्टीरिया से उत्पन्न और बढ़ते जोखिम का सामना करने में पूर्ण रूप से सक्षम नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन में एंटी माइक्रोबियल प्रतिरोध विभाग में सहायक महानिदेशक डॉक्टर हनान बालखी के अनुसार, नई प्रभावशाली एंटीबायोटिक्स दवाओं के विकास, उत्पादन और वितरण में लगातार नाकामी के कारण एंटी माइक्रोबियल प्रतिरोध का प्रभाव और ज्यादा बढ़ रहा है। साथ ही यह बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमण का सफलतापूर्वक इलाज करने की हमारी क्षमता के लिये भी गंभीर खतरा बनता जा रहा है। गरीबों पर मार : वैश्विक संगठन के अनुसार, इस स्थिति में बच्चों व गरीबी में जीने वाले लोगों को सबसे अधिक खतरा है। हालांकि यह भी अहम बात है कि एंटी बायोटिक दवाओं के लिये प्रतिरोधी क्षमता हासिल कर चुके संक्रमण किसी को भी प्रभावित कर सकते हैं। नवजातों को ज्यादा जोखिम: रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 10 में से 3 नवजातों की रक्त संक्रमण के कारण मौत हो जाती है क्योंकि इसके इलाज के लिये जो एंटी बायोटिक दवाएं इस्तेमाल की जाती हैं वो रक्त संक्रमण के इलाज के लिये असरदार नहीं बची हैं। इसी तरह निमोनिया ने भी उपलब्ध दवाओं के लिये प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर ली है। ये बीमारी भी पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत का प्रमुख कारण है। 1980 में बनी दवाओं के संशोधित रूप : रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में उपलब्ध लगभग सभी एंटी बायोटिक्स दवाएं दरअसल 1980 में विकसित की गई दवाओं के ही भिन्न व संशोधित रूप हैं। रिपोर्ट कहती है कि हम दांत निकलवाने से लेकर अंग प्रत्यारोपण और कैंसर का इलाज कराने तक इन दवाओं पर व्यापक पैमाने पर निर्भर हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, परीक्षण के क्लीनिकल स्तर वाली और विकसित की जाने वाली मौजूदा एंटी बायोटिक दवाओं का उत्पादन लगभग स्थिर है। महामारी के समय का फायदा नई दावा बनाने में करें : डब्लूएचओ में एंटी माइक्रोबियल प्रतिरोध वैश्विक समन्वय के निदेशक हेलेयेसस गेताहून के मुताबिक, कोविड-19 महामारी से उत्पन्न अवसरों का फायदा नई व प्रभावशाली एंटी बायोटिक्स दवाओं के शोध व उत्पादन में संसाधन निवेश करने के लिए किया जाना चाहिए। हाल के वर्षों में नियामकों ने केवल कुछ ही दवाओं को शुरूआती स्तर की स्वीकृति दी है। इनमें से अधिकतर मौजूदा इलाजों पर केवल सीमित चिकित्सा लाभ ही पहुंचते हैं।

कोरोना की दूसरी लहर की वजह से देश में चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है। […]