पंजशीर घाटी में बंदूक की नहीं चली तो वार्ता कर रहा तालिबान, समझौते को भेजे 40 प्रतिनिधि

अफगानिस्तान में अजेय बने पंजशीर घाटी में कमजोर पड़ने पर अब तालिबान ने भी वार्ता की राह पर चलने का फैसला लिया है। इस कड़ी में तालिबान ने अपने 40 सदस्यों के एक प्रतिनिधमंडल को समझौते के लिए पंजशीर घाटी की सेनाओं के पास भेजा। हालांकि, इस वार्ता का निष्कर्ष क्या निकला, यह अभी तक साफ नहीं है।

दरअसल पंजशीर में अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद और खुद को अफगानिस्तान का केयरटेकर राष्ट्रपति घोषित कर चुके अमरुल्लाह सालेह तालिबान को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। सालेह ने ऐलान कर दिया था कि सिर्फ सार्थक वार्ताएं ही स्वीकार की जाएंगी। इसके बाद तालिबान की ओर से प्रतिनिधिमंडल भेजा जाना सीधे तौर पर उसके बर्ताव में आई नरमी को दिखा रहा है।

 

पंजशीर में तालिबान विरोधी सेना का नेतृत्व कर रहे अहमद मसूद ने बीते रविवार को ही तालिबान के साथ शांतिपूर्वक वार्ता होने की उम्मीद जताई थी। उन्होंने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से टेलीफोन पर बातचीत के दौरान कहा, ‘हम तालिबान को यह एहसास कराना चाहते हैं कि आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका वार्ता है। हम नहीं चाहते कि युद्ध छिड़े।’

यह बयान तालिबानियों की उस टिप्पणी के बाद आया था, जिसके मुताबिक सैकड़ों तालिबानी लड़ाके पंजशीर घाटी की ओर बढ़ रहे थे।

बता दें कि इकलौता प्रांत पंजशीर ही है, जहां तालिबान के खिलाफ नया नेतृत्व बन रहा है, जो तालिबान की सत्ता को मानने से इनकार कर रहा है। अहमद मसूद के पिता अहमद शाह मसूद भी तालिबान से हमेशा लड़ते रहे हैं. उन्होंने तो अफगानिस्तान से सोवियत संघ को भी बाहर करने में अहम भूमिका निभाई थी। अहमद शाह मसूद की हत्या साल 2001 में तालिबान और अलकायदा के लड़ाकों ने की थी।

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