अफगानिस्तान की सत्ता पर एक बार फिर आतंकी संगठन काबिज हो गया है। करीब दो दशक बाद अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान की वापसी भारत सहित दुनिया के अनके देशों को चिंता में डाल दिया है। जहां एक तरफ तालिबान दुनिया के अलग-अलग देशों से मान्यता पाने के लिए खुद को बदलने का दावा कर रहा है। वहीं, दूसरी तरफ अफगानिस्तान की राजधानी काबुल से आ रही तस्वीरें डरावनी हैं। दुनिया भर के देशों की अभी पहली कोशिश है कि 31 अगस्त तक अपने नागरिकों को अफगानिस्तान से सकुशल वापस निकाल लिया जाए। अफगानिस्तान के मौजूदा हालात भारत के लिए काफी चिंताजनक हैं। पिछले 20 सालों में भारत ने अफगानिस्तान के सड़क से लेकर संसद तक अनेकों प्रोजेक्ट में निवेश किया। इस दौरान भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापारिक रिश्ते भी मजबूत हुए।
2019-20 में 11 हजार करोड़ रुपये का व्यापार
हाल के वर्षों में भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापारिक रिश्तों में आई मजबूती का सबूत आंकड़े भी दे रहे हैं। साल 2019-20 में भारत और अफगानिस्तान के बीच 1.5 अरब डाॅलर यानी लगभग 11,131 करोड़ रुपये का द्विपक्षीय व्यापार किया गया। वहीं, साल 2020-21 में 1.4 बिलियन डाॅलर यानी लगभग 10,387 करोड़ रुपये का व्यापार हुआ। भारत, पाकिस्तान के बाद अफगानिस्तान दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है।
साल 2020-21 में अफगानिस्तान से 825 मिलियन डाॅलर का निर्यात किया था, जबकि आयात 509 मिलियन डाॅलर का हुआ था। 2016-17 के मुकाबले यह 74 प्रतिशत अधिक था। ऐसे में तालिबान की हुकूमत की वापसी ने व्यापारियों की चिंताएं बढ़ा दी हैं।
महंगा हो जाएगा ड्राई फ्रूट्स
अफगानिस्तान से व्यापार ठप्प होने की वजह से सूखे मेवे के दाम में उछाल देखने को मिल सकता है। अफगानिस्तान से निर्यात में ताजे फल, सूखे मेवे जैसे अंजीर, अखरोट, बादाम, हींग, किसमिस के दामों में 40% तक की तेजी देखने को मिल सकती है। जबकि भारत से अफगानिस्तान को दवाईयां, कपड़े, कंप्यूटर, हार्डवेयर मशीन, सीमेंट, चीनी जैसे सामानों का निर्यात होता है। आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत और अफगानिस्तान के बीच हो रहे व्यापार में सबसे ज्यादा फायदा भारत का ही है। पिछले पांच सालों में निर्यात में 64% का उछाल आया है।
अब आगे क्या है संभावना?
सवाल तो यही है कि अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज होने वाले तालिबान के साथ भारत व्यापार जारी रखेगा? सरकार ने की तरफ से इसको लेकर अभी तक कोई बयान नहीं आया है। मुंबई के एक व्यापारी नाम ना छापने की स्थिति में मिंट को बताया कि 1996 से 2001 के दौरान तालिबान के शासन में व्यापार हो रहा था। लेकिन इस बार व्यापार जारी रहेगा या नहीं इसको लेकर संशय बना हुआ है।