केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट से लगा झटका, याचिका खारिज कर बोला- ऑक्सीजन सप्लाई पर हाईकोर्ट का आदेश सही

ऑक्सीजन सप्लाई के मुद्दे पर कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ जाने वाली केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने कर्नाटक हाईकोर्ट के 1200 MT ऑक्सीजन देने के आदेश खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र को राज्य के लिए 1200 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति करने का कर्नाटक उच्च न्यायालय का आदेश अच्छी तरह से जांचने के बाद और शक्ति के विवेकपूर्ण प्रयोग के तहत दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने आदेश में कहा कि हम कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश में दखल नहीं देंगे, क्योंकि हाईकोर्ट ने कैलिब्रेटेड अभ्यास किया है और हमें इसमें दखल देने का कोई कारण भी नहीं दिखता। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कोरोना के 3.95 लाख मामलों पर कर्नाटक के मुताबिक 1700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत है। 1100 मीट्रिक टन ऑक्सीजन कर्नाटक की न्यूनतम आवश्यकता है।

बता दें कि बीते दिनों कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कोविड-19 मरीजों के इलाज के लिए राज्य में तरल चिकित्सकीय ऑक्सीजन (एलएमओ) की रोजाना आपूर्ति 965 मीट्रिक टन से बढ़ाकर 1200 मीट्रिक टन करने के निर्देश दिए थे। इसके बाद गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में इस मामेल की सुनवाई हुई और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ के समक्ष सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्य को इस समय 965 मीट्रिक टन एलएमओ की आपूर्ति की जा रही है और उस आदेश पर तुरंत रोक लगाने की जरूरत है। इसके बाद पीठ ने कहा कि इस मामले में कोई भी आदेश पारित करने से पहले वह दस्तावेजों को देखेगी।

वहीं दिल्ली में ऑक्सीजन संकट पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नसीहत देते हुए कहा है कि आप हमें कड़े फैसले के लिए मजबूर न करें। दिल्ली को प्रतिदिन 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की सप्लाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही है। दिल्ली सरकार की ओर से अदालत में कहा गया था कि उसके आदेश के बाद भी हर दिन 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की सप्लाई सुनिश्चित नहीं हो पा रही। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि उसे हर दिन दिल्ली को 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की सप्लाई सुनिश्चित करनी होगी। कोर्ट ने कहा कि उसे यह सप्लाई तब तक जारी रखनी होगी, जब तक कि आदेश की समीक्षा नहीं की जाती है या कोई बदलाव नहीं होता।

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