24 घंटे के लिए केएमपी एक्सप्रेस-वे जाम करने को फिर सड़क पर उतरे किसान

नए कृषि कानूनों को लेकर किसानों और सरकार के बीच में जारी गतिरोध अभी टूटता दिखाई नहीं दे रहा है। तीनों कानून वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कानून बनाने की जिद अड़े किसान बिना मांगें माने पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर आंदोलनकारी किसान आज 24 घंटे के लिए कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेस-वे को जाम कर रहे हैं। वहीं, ईस्टर्न पेरिफेरल पर पहुंचे किसानों ने भी जाम लगाना शुरू कर दिया है। किसान एक्सप्रेस-वे पर बैठकर ट्रैफिक रोक रहे हैं। इसे देखते हुए गाजियाबाद के डासना बूथ भारी संख्या में पुलिस बल मौजूद है। इसके बाद वो मई में संसद तक पैदल मार्च भी करेंगे, इसके लिए जल्द ही तारीख पर फैसला किया जाएगा।

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– किसानों ने KMP जाम कर दिया है। हम लोग जल्दी ही इसे खाली कराने के लिए बात कर रहे हैं ताकि लोगों को असुविधा न हो। लोग अपने वैकल्पिक रूट पर जा रहे हैं। जो भी उपयुक्त स्थान है वहां से डायवर्जन किया जा रहा है। लोग वहां से अपने गंतव्य की तरफ जा रहे हैं: SP ट्रैफिक, गाजियाबाद

 – कृषि कानूनों के खिलाफ हरियाणा के पलवल में प्रदर्शन कर रहे किसानों का कहना है कि वे कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेस-वे जाम करने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान का समर्थन नहीं करेंगे। एक ब्लॉक समिति के सदस्य राजकुमार का कहना है कि हमने मोर्चा की अब तक की सभी कॉलों का समर्थन किया है लेकिन यह फसल कटाई का मौसम है। हमने लोगों से कहा कि वे काम करें।

– किसान ट्रैक्टरों के साथ यहां आ रहे थे। हमने उनसे कहा कि इसके बजाय काम करें। हमें श्रमिकों को प्रभावित नहीं होने देना चाहिए, हमें उनकी देखभाल भी करनी चाहिए। KMP-KGP को वैसे भी ब्लॉक किया जाएगा। पुलिस ने रूट डायवर्ट कर दिया है। वैसे भी ट्रैफिक यहां नहीं पहुंचेगा : राजकुमार, ब्लॉक समिति सदस्य

– किसानों द्वारा 24 घंटे के लिए केएमपी जाम का ऐलान के चलते गुरुग्राम पुलिस ने केएमपी पर मानेसर से बादली की तरफ जाने वाले ट्रैफिक को फर्रुखनगर से डायवर्ट कर दिया है। हालांकि, गुरुग्राम इलाके में पड़ने वाले केएमपी पर अभी किसानों ने जाम नहीं किया है।

ज्ञात हो कि मार्च महीने की शुरुआत में दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के आंदोलन के 100 दिन पूरे होने पर प्रदर्शनकारी किसानों ने केएमपी एक्सप्रेस-वे और वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे को बाधित कर दिया था। इस दौरान किसानों ने सुबह 11 बजे से शाम 4 बजे तक एक्सप्रेस-वे को विभिन्न जगहों पर पांच घंटे के लिए रोक दिया था। इसके बाद किसान आंदोलन को चार महीने पूरे होने पर 26 मार्च को किसान मोर्चा ने 12 घंटे का भारत बंद बुलाया था।

सार्वजनिक रास्तों को बंद नहीं किया जाना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

प्रदर्शनकारी किसानों के रास्ता बंद करने के कारण दिल्ली जाने में हो रही दिक्कत को लेकर नोएडा की रहने वाली एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा था कि सार्वजनिक रास्तों को बंद नहीं किया जाना चाहिए। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच ने याचिका पर दिल्ली पुलिस कमिश्नर के जवाब पर संज्ञान लिया और कहा कि सही निर्णय के लिए उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सरकारों को भी पक्षकार बनाए जाने की जरूरत है।

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसानों के प्रदर्शन का संदर्भ दिए बगैर बेंच ने कहा कि हमें इससे मतलब नहीं है कि आप इसका हल कैसे करते हैं, राजनीतिक रूप से, प्रशासनिक रूप से या न्यायिक रूप से, लेकिन हम पहले भी कह चुके हैं कि सड़कों को बंद नहीं किया जाना चाहिए। वह (याचिकाकर्ता) अकेले अपने बच्चे की देखभाल करती हैं और सड़क बंद होने के कारण उन्हें कई मुश्किलों को सामना करना पड़ता है।

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये हुई सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि सार्वजनिक सड़कों को बाधित नहीं किया जाना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के आदेशों में यह बार-बार कहा जा चुका है। बेंच शुक्रवार को मोनिका अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिनका आरोप था कि नोएडा से दिल्ली के उनके सफर में रास्ता बाधित होने की वजह से सामान्य तौर पर लगने वाले 20 मिनट की जगह दो घंटे का वक्त लग रहा है। दिल्ली सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दिल्ली पुलिस के अलावा उत्तर प्रदेश और हरियाणा को भी पक्षकार बनाया जाना चाहिए और उनके वकीलों को भी सुनवाई में पेश होना चाहिए। इस पर अदालत ने उत्तर प्रदेश और हरियाणा को भी पक्षकार बना दिया। अदालत ने इस मामले में सुनवाई की अगली तारीख अब 19 अप्रैल को तय की है।

26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं किसान

गौरतलब है कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ बीते साल 26 नवंबर से हजारों की तादाद में किसान दिल्ली और हरियाणा की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। कृषि कानूनों को रद्द कराने पर अड़े किसान इस मुद्दे पर सरकार के साथ आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर चुके हैं। किसानों ने सरकार से जल्द उनकी मांगें मानने की अपील की है। वहीं सरकार की तरफ से यह साफ कर दिया गया है कि कानून वापस नहीं होगा, लेकिन संशोधन संभव है।

बता दें कि किसान हाल ही बनाए गए तीन नए कृषि कानूनों – द प्रोड्यूसर्स ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) एक्ट, 2020, द फार्मर्स ( एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेज एक्ट, 2020 और द एसेंशियल कमोडिटीज (एमेंडमेंट) एक्ट, 2020 का विरोध कर रहे हैं। केन्द्र सरकार सितंबर में पारित किए तीन नए कृषि कानूनों को कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के तौर पर पेश कर रही है, वहीं प्रदर्शन कर रहे किसानों ने आशंका जताई है कि नए कानूनों से एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) और मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी और वे बड़े कॉरपोरेट पर निर्भर हो जाएंगे।

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