जिला पंचायत अध्यक्ष और ग्राम प्रधान पद के आरक्षण की घोषणा होने के बाद सभी दलों में घमासान शुरू हो गया है। जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव दलीय होने के कारण माना जाता है कि जिस दल की सरकार होती है तो उसी दल के प्रत्याशी को जिला पंचायत अध्यक्ष चुना जाता है। बीच में सरकार बदल गई तो जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी भी खिसक जाती है।
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर जिला पंचायत अध्यक्ष के पदों की आरक्षण सूची जारी होने के बाद मेरठ की सियासत गर्म हो गई है। अध्यक्ष का पद अनारक्षित होने के बाद विभिन्न राजनैतिक दलों के लोगों ने इसे प्रतिष्ठा पूर्ण सीट पर कब्जा जमाने के लिए सियासी गोटियां बिछाना शुरू कर दी हैं। भाजपा के साथ प्रमुख विपक्षी दल सपा, बसपा व कांग्रेस भी आरक्षण जारी होने के बाद जोड़-तोड़ में लग गई है। मेरठ जिले में जिला पंचायत अध्यक्ष की सीट इस बार भी अनारक्षित हुई है। ऐसे में जिले के सियासी दिग्गज इस बार पद पाने के लिए जोड़-तोड़ में जुट गए हैं। सभी अपने लिए सुरक्षित सीट की तलाश कर रहे हैं। 1995 से लेकर अब तक जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर भाजपा का कब्जा पहली बार हुआ है। सीधे तौर पर मानें तो अब तक इस सीट पर वही बैठा जिसे सत्ताधारी दल का सहयोग मिला। इस बार फिर सीट अनारक्षित होने के बाद अध्यक्ष पद के लिए जोरदार मुकाबला होने की उम्मीद जताई जा रही है। सत्ता में होने के कारण भाजपा में कई नामों पर विचार शुरू हो गया है। हालांकि पार्टी नेताओं का साफ कहना है कि अभी कोई प्रत्याशी नहीं है। टिकट मांगने का अधिकार सभी को है। जिला पंचायत अध्यक्ष के साथ ग्राम प्रधानों के आरक्षण में ही अनारक्षित अधिक होने से गांव की सरकार की सियासत गर्म हो गई है।
33 वार्डों के आरक्षण से तय होगा अध्यक्ष
जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी 33 वार्डों के आरक्षण से तय होगी। यदि 33 वार्डों में अनारक्षित से अधिक सीटें निकली तो उस कोटे का अध्यक्ष होगा। यदि ओबीसी या अनुसूचित जाति(एससी) से अधिक सीटें आई तो उस कोटे से अध्यक्ष के नाम पर विचार होगा। अब सभी की नजर जिला पंचायत के 33 वार्डों के आरक्षण पर टिक गई है।
प्रमुखों के आरक्षण की आधिकारिक सूची का इंतजार
ब्लाक प्रमुखों के आरक्षण की आधिकारिक सूची का अभी इंतजार है। हालांकि अधिकारियों के अनुसार 2011 के आंकड़ों के आधार पर वायरल आरक्षण सूची सही लग रही है। वैसे आधिकारिक सूची पंचायती राज निदेशक की ओर से जल्द जारी होने वाली है।