पाकिस्तानी मीडिया ने सत्ता परिवर्तन का स्वागत किया, कहा- ‘विनाशकारी टकराव’ टला

पाकिस्तानी मीडिया ने सत्ता परिवर्तन का स्वागत किया, कहा- ‘विनाशकारी टकराव’ टला

इस्लामाबाद। पाकिस्तानी मीडिया ने देश में सत्ता परिवर्तन होने का रविवार को स्वागत किया और राहत जताते हुए कहा कि राज्य की संस्थाओं के बीच एक ‘‘विनाशकारी टकराव’’ टल गया।

कई दिनों के नाटकीय घटनाक्रम के आखिरकार शनिवार देर रात इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार को अविश्वास प्रस्ताव में शिकस्त का सामना करना पड़ा। मतदान आधी रात को हुआ और इससे पहले खान की अल्पमत सरकार ने विपक्षी दलों द्वारा पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव को रोकने की पूरी कोशिश की।

‘डॉन’ अखबार ने एक संपादकीय में कहा, ‘‘कल (शनिवार) देर रात एक समय ऐसा लगा मानो राज्य की सभी संस्थाओं के बीच विनाशकारी टकराव हो रहा है। यह आपदा राज्य के उच्चतम स्तरों पर आघात पहुंचाने के लिए तैयार खड़ी नजर आ रही थी।’’

अखबार ने ‘‘बैक टू द पवेलियन’’ शीर्षक वाले संपादकीय में कहा, ‘‘यहां तक कि सत्ता जाना निश्चित होने के बावजूद भी इमरान खान न्यायपालिका और सेना प्रमुखों के साथ-साथ पूरी विधायिका के प्रमुखों को ‘आखिरी गेंद’ खेलने के लिए मजबूर करके सामान्य संसदीय प्रक्रिया को तमाशा में तब्दील करने के इच्छुक थे।’’

‘द न्यूज इंटरनेशनल’ ने सियासी घटनाक्रम पर अपने संपादकीय में कहा कि यह सब अलग तरीके से हो सकता था। संपादकीय में कहा गया है, ‘‘उच्चतम न्याायालय का हस्तक्षेप हुआ, और फिर एक अराजक दिन उच्चतम न्यायालय और इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के दरवाजे देर रात खोले गए।’’

इसें कहा गया है, ‘‘दुर्भाग्य से (खान की पार्टी) पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने प्रक्रियाओं और संस्थाओं के प्रति सम्मान नहीं प्रकट करते हुए जिस तरह से अपना शासन चलाया, यह उसका सटीक प्रतिबिंब है।’’

संपादकीय में कहा गया है कि खान शनिवार सुबह (संसद के निचले सदन) नेशनल असेंबली के सत्र में शामिल हो सकते थे, जब इसकी बैठक शुरू हुई। नेशनल असेंबली के अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का पालन कर सकते थे और अविश्वास प्रस्ताव के लिए मतगणना करा सकते थे। सत्तारूढ़ दल और उसके प्रधानमंत्री बाहर का रास्ता देखने से पहले कुछ गरिमापूर्ण व्यवहार कर सकते थे।

अखबार में कहा गया, ‘‘लेकिन सरकार के पिछले लगभग चार वर्षों के कामकाज की तरह पीटीआई (खान की पार्टीत्र और खान ने नेशनल असेंबली के सत्र को स्थगित करने और अविश्वास प्रस्ताव को आगे नहीं बढ़ने देने का फैसला किया।’’

‘इमरान सत्ता से बेदखल’ संपादकीय में अखबार ने कहा, ‘‘ देश में लगातार लोकतांत्रिक बदलाव के लिए इतने लंबे संघर्ष के बाद एक राजनेता को इन हथकंडों का सहारा लेते देखना, संविधान का अनादर करना और अविश्वास प्रस्ताव की अनुमति नहीं देना, झकझोर कर रख देने वाला और निराशाजनक था।’’

‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ अखबार ने अपने संपादकीय में कहा कि दिन भर की कार्यवाही के दौरान विपक्ष के लगातार याद दिलाने के बावजूद खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान नहीं कराया गया।

अखबार ने कहा कि सरकार की ओर से अशोभनीय देरी करने की रणनीति न केवल अदालत की अवमानना के समान थी, बल्कि राजनीतिक रूप से यह अराजकता पैदा करने जैसी थी।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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