सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक केस की सुनवाई करते हुए कहा कि कोरोना का कुछ न कुछ समाधान है, ऐसा सोचने वाले हर व्यक्ति को याचिका दायर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। इस टिप्पणी के साथ ही न्यायालय ने उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि चीन जैविक हथियार के रूप में वायरस का जान-बूझकर प्रसार कर रहा है। न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश ने एक वकील की याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह महज प्रचार के लिए दायर की गई थी। शीर्ष अदालत ने जनहित याचिका दायर करने के लिए याचिकाकर्ता को फटकार लगाई।
कोर्ट ने कहा, ‘क्या यह अदालत का काम है कि वह देखे कि अंतरराष्ट्रीय प्रभाव क्या है, चीन नरसंहार कर रहा है या नहीं?’ पीठ ने कहा, ‘यह किस तरह की याचिका है। क्या चल रहा है? ऐसा लगता है कि आपने यह याचिका महज अदालत के सामने पेश होने के लिए दायर की। और कुछ नहीं।’ याचिका खारिज करते हुए शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘याचिका में आरोप लगाया गया है कि चीन जानबूझकर कोविड-19 को जैविक हथियार के रूप में फैला रहा है और अदालत को इस संबंध में सरकार को कुछ आदेश जारी करना चाहिए। कार्रवाई करना सरकार का काम है।’
पीठ ने कहा, ‘हम हर उस व्यक्ति को अनुमति नहीं दे सकते जो वायरस के कुछ समाधान के बारे में सोचता है, कि वह अनुच्छेद 32 के तहत आए और याचिका दायर करता है। किसी भी चीज ने उसे उपयुक्त प्राधिकारी को सुझाव देने से नहीं रोका। हमें विश्वास है कि वह यहां प्रेस में नाम पाने के लिए आए हैं और हम प्रेस से अनुरोध करते हैं कि वे ऐसा न करें।’ कर्नाटक के एक वकील की जनहित याचिका में कहा गया था कि वर्जिन नारियल तेल वायरस को मार सकता है और साथ ही इसमें केंद्र सरकार को चीन को वायरस फैलाने से रोकने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।