कोरोना महामारी के चलते यूजीसी ने सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति में पीएचडी की अनिवार्यता से 01 जुलाई 2023 तक छूट प्रदान की है। लेकिन वास्तव में नेट उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को इसका कोई लाभ मिलता नहीं दिख रहा है। इस बारे में यूजीसी से नियमों में बदलाव की मांग की गई है। यूजीसी के नए नियमों के तहत सहायक प्रोफेसर पद पर नियुक्ति के लिए 01 जुलाई 2021 से पीएचडी अनिवार्य की गई थी। लेकिन कोरोना के चलते कुछ माह पूर्व इसमें दो साल की छूट प्रदान की गई। यानी इस दौरान नेट उत्तीर्ण उम्मीदवार भी सहायक प्रोफेसर पद पर नियुक्त किए जा सकेंगे। लेकिन इस बीच भी विश्वविद्यालयों में जिस प्रकार से नियुक्ति प्रक्रिया चल रही है, उसमें अभ्यर्थियों को इसका वास्तविक लाभ नहीं मिल रहा है।
नेट उम्मीदवारों ने बताया कि विश्वविद्यालयों ने नियुक्ति प्रक्रिया के लिए जो मानक निर्धारित किए हैं, वह पीएचडी धारकों को लाभ पहुंचाते हैं और नेट उम्मीदवार पिछड़ जाते हैं। नियुक्ति प्रक्रिया के दौरान विश्वविद्यालय पीएचडी धारकों को 30 अंक देते हैं। जबकि नेट के सिर्फ 5 अंक मिलते हैं। ऐसे में पीएचडी धारक उम्मीदवार को स्वत: ही बढ़त मिल जाती है, जबकि कम अंक के कारण नेट उम्मीदवार पिछड़ जाते हैं।
जानकारों का कहना है कि जब नेट और पीएचडी दोनों को सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए अभी समान योग्यता माना गया है तो दोनों प्रकार के उम्मीदवारों के लिए समान अंकों का प्रावधान होना चाहिए। 5 और 30 अंकों का अंतर इतना ज्यादा है कि उसमें नेट धारकों की नियुक्ति की दूर-दूर तक संभावना नहीं रहती है।
ऐसे में पीएचडी की अनिवार्यता से छूट प्रदान करने का भी कोई औचित्य नही रह जाता है। इस बारे में यूजीसी को कई ज्ञापन उम्मीदवारों की तरफ से भेजे गए हैं।