सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी विवाद की जांच के लिए पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से नियुक्त आयोग पर रोक लगा दी है। आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल सरकार ने पूर्व न्यायाधीश मदन बी. लोकुर के नेतृत्व में नियुक्त आयोग का गठन किया था।
ममता ने आयोग के गठन पर कहा था, ‘पेगासस के जरिए हर कोई न्यायपालिका से लेकर नागरिकों तक सभी को सर्विलांस में रखा गया। हमें उम्मीद थी कि संसद के दौरान केंद्र सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में मामले की जांच करेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। पश्चिम बंगाल जांच आयोग शुरू करने वाला पहला राज्य है।’
सुप्रीम कोर्ट ने गठित की है कमेटी
इससे पहले अक्टूबर महीने के अंतिम सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके अनाधृकित जासूसी के आरोपों की जांच करने के लिए एक समिति नियुक्त कर दी थी। तकनीकी विशेषज्ञों की यह समिति अदालत की निगरानी में काम करेगी। यह आदेश सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों वाली एक पीठ ने दिया, जिसमें मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्या कांत और जस्टिस हीमा कोहली शामिल थे।
समिति में तीन तकनीकी विशेषज्ञ होंगे और सेवानिवृत्त जज जस्टिस आरवी रवींद्रन समिति के काम की देखरेख करेंगे। समिति सभी आरोपों का अध्ययन करेगी और अदालत को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। सुप्रीम कोर्ट मामले पर आठ सप्ताह बाद फिर से सुनवाई करने की बात कही थी।
क्या है पेगासस और कितना है खतरनाक, कैसे होती है जासूसी?
इजरायली कंपनी एनएसओ का पेगासस स्पाईवेयर ‘नेटवर्क इंजेक्शन’ तकनीक के तहत किसी बेस ट्रांसीवर स्टेशन (बीटीएस) के जरिये लोगों के फोन में सेंध लगाने में सक्षम है। बीटीएस उस फर्जी मोबाइल टॉवर को कहते हैं, जिसका निर्माण वैध सेलुलर टॉवर की नकल के तौर पर किया जाता है। यह अपने दायरे में आने वाले सभी फोन को उससे संबंधित सिग्नल खुद तक पहुंचाने के लिए बाध्य करता है। पेगासस सेवा प्रदाता कंपनी के वैध टॉवर में भी सेंधमारी करने की क्षमता रखता है।