महाराष्ट्र में कोरोना वायरस के कहर ने कोहराम मचा रखा है। देश के सबसे ज्यादा कोरोना प्रभावित शहर पुणे की भी हालत बेहद खराब है। बुधवार को पुणे में कोरोना वायरस के करीब 10 हजार से अधिक केस आए। पुणे में कोरोना के एक्टिव केसों की संख्या जहां 120000 पार हो गई है, वहीं अब तक 8945 लोगों की मौतें हो चुकी हैं। इनमें से 35 मौतें तो सिर्फ बुधवार को हुईं। पुणे के शहरी इलाके में ग्रामीण इलाके से अधिक कोरोना की मार देखने को मिल रही है। बुधवार को पुणे के ग्रामीण इलाके में जहां 2998 नए केस मिले, वहीं शहरी इलाके में 5538 नए केस मिले।
पुणे में कोरोना वायरस से जितने लोगों की मौतें हुईं हैं, उनमें सबसे अधिक लोग 61 से 70 साल के आयु वर्ग वाले हैं और इनमें से महज 6 फीसदी लोगों ने ही कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज ली थी। पुणे में इस आयु वर्ग में 10 लाख से अधिक लोगों की आबादी है और केवल 64,000 लोगों ने टीका की दोनों खुराक प्राप्त की है, जबकि जिला सूचना कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार, कम से कम 640,000 लोगों ने पहली खुराक प्राप्त की है। पुणे में बुधवार को 58,900 लोगों को टीका लगाया गया, जिनमें से अधिकांश लाभार्थी पुणे ग्रामीण इलाके के थे। पुणे में कोरोना से ठीक होने वालों की संख्या 11000 और जुड़ के 6 20,000 हो गई।
पुणे में स्वास्थ्य व्यवस्था भी चरमरा गई है। छोटे अस्पतालों ने नए रोगियों को भर्ती करना बंद कर दिया है और ये छोटे अस्पताल मरीजों के रिश्तेदारों को मल्टी-स्पेशियलिटी अस्पतालों में भर्ती कराने की सलाह दे रहे हैं, क्योंकि उनके पास अब जगह नहीं है। यहां कोरोना के खिलाफ लड़ाई में छोटे अस्पताल काफी अहम हैं, मगर ऑक्सीजन की कमी के कारण वे कोरोना मरीजों को बड़े मल्टीस्पेशियलिटी अस्पतालों में भेजने के लिए मजबूर हैं।
पुणे अस्पताल बोर्ड ऑफ इंडिया के चेयरमैन डॉ संजय पाटिल ने कहा कि शुरुआती दिनों में छोटे अस्पताल ऑक्सीजन के साथ बड़े अस्पतालों को सहायता प्रदान करने में कामयाब रहे, मगर अब यह संभव नहीं है। मल्टी-स्पेशियलिटी अस्पतालों में उनके पास दो विकल्प होते हैं- या तो उनके पास खुद का ऑक्सीजन प्लांट हो या सिलेंडर होता है। यह छोटे अस्पतालों के मामले में नहीं है।
पुणे में कोरोना से ठीक हो चुके कई मरीजों ने म्यूकोर्मोसिस से संक्रमित होने की सूचना दी है। दरअसल, म्यूकोर्मोसिसे एक तरह की दुर्लभ और गंभीर फंगल इंफेक्शन है, जिसमें यह फंगल आंख, नाक, कान, जबडा व दिमाग पर प्रहार कर रहा है और इसमें मौत की गुंजाइश ज्यादा होती है। एचटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, पुणे का हर अस्पताल हर महीने ऐसे 10 मामलों की रिपोर्ट कर रहा है। म्यूकोर्मोसिस का इलाज करते समय मौत की गुंजाइश अधिक होती है, मगर इसमें सर्जरी ही एकमात्र विकल्प है। अगर सर्जरी नहीं की जाती है, तो संक्रमण के मस्तिष्क में फैलने की संभावना होती है। इसकी जानकारी डॉ सुधीर ने दी।