रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़ी मानवीय संवेदना

रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़ी मानवीय संवेदना

किसी भीदेश के लिए शायद यह सबसे गौरव का विषय होगा कि उसके नागरिक जो दूसरे देशों में रहते हैं, यद्ध के दिनों में मातृभूमि की रक्षा के लिए लौट आए। मातृभूमि के प्रति प्रेम, लगाव का इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा। युद्ध में शायद किसी की भी जीत नहीं होती। दोनों देशों में जान-माल और बेकसूर लोग मारे जाते हैं। युद्ध में गए सैनिकों का हर रिश्ता प्रभावित होता है। एक मां, एक बहन, पत्नी, भाई, पिता, पुत्र, मित्र, सभी रिश्ते कहीं न कहीं कुछ खो देते हैं। युद्ध के जख्म तो भर जाते हैं, लेकिन निशान नहीं मिटते। युद्ध से मिला दर्द पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। यूक्रेन ने अब तक रूस का डट कर मुकाबला किया है और शायद कुछ दिन और कर पाए। अगर युद्ध जारी रहा तो हो सकता है रूस की सैन्य क्षमता के आगे वे झुक जाएं। इस सबके बावज़ूद यूक्रेन का मनोबल बरकरार है और विश्व के कई देश चाहते हैं कि जल्दी युद्धविराम हो…

रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध में दो-तीन चीज़ें गौर करने योग्य हैं, अगर हम मानवीय मूल्यों को सामने रख कर देखते हैं तो। यूक्रेन में शिक्षा ग्रहण कर रहे भारतीय छात्र, जो देश के विभिन्न हिस्सों से वहां गए थे, वे अधिकतर स्वदेश लौट आए हैं। उनमें से हिमाचल के भी बहुत छात्र थे। एयर इंडिया चूंकि अब टाटा समूह के पास है, लेकिन टाटा समूह जब भी देश में आंतरिक या बाहरी संकट आता है, तब देश की मदद के लिए सबसे आगे होता है। अधिकतर भारतीयों को यूक्रेन से वापस भारत ले आया गया है। हर नागरिक का जीवन महत्वपूर्ण है। चाहे वे किसी भी देश में रहें, उनकी सुरक्षा का दायित्व उसी देश का होता है जहां वे रहते हैं। लेकिन युद्ध की स्थिति बिल्कुल अलग होती है।

इसमें कई बार अपनी जान जोखिम में डालने से बेहतर स्वदेश लौट जाना ही बेहतर होता है। अब तक के युद्ध में यूक्रेन ने रूस के इरादों को फलीभूत होने नहीं दिया। एक मज़बूत विद्रोह और प्रतिरोध है जिसका सामना रूस की सेना को करना पड़ रहा है। हो सकता है कि शीघ्र ही शांति संधि हो जाए या आमने-सामने बैठ कर बात की जाए। पिछले दो सालों में भारत सरकार ने भारत से बाहर रह रहे भारतीयों को स्वदेश लाने के लिए सारे प्रयत्न किए हैं, जो एक सरकार को करने चाहिए थे। चाहे वे कोरोना काल में विदेशों में फंसे भारतीय ही क्यों न हों। ‘वंदे भारत’ के विमानों ने कितनी ही उड़ानंे भरी, उन छात्रों, व्यवसायियों और दूसरे भारतीय नागरिकों को भारत सुरक्षित लाने के लिए। महामारी के दौरान अपनी जान को जोखिम में डाल कर हर भारतीय को सुरक्षित घर लाना एक ऐसा दायित्व था जिसे सरकार ने बहुत निपुणता से निभाया। अफगानिस्तान में जब तालिबानों ने सरकार का तख्ता पलट किया तो वहां फंसे हर एक भारतीय को वायुसेना के विशेष विमानों से भारत लाया गया। अपने नागरिकों के प्रति जो विदेश में रहते हैं, भारत की नीति बहुत उदार है और संकट की घड़ी में हर समय उनका साथ दिया है। रूस के यूक्रेन पर आक्रमण का पूरे विश्व में सार्वजनिक तौर पर विरोध हुआ है। यूरोप में लोग सड़कों पर उतर आए हैं। रूस के राष्ट्रपति पुतिन चाहते हैं कि उनका दुनिया पर वर्चस्व हो, लेकिन उनका यह दाव वर्चस्व की लड़ाई में शायद खरा नहीं उतरा।

युद्ध के दौरान मानवीयता के कई उदाहरण सामने आते हैं, जैसे हरियाणा की एक बहादुर बालिका ने यूक्रेन में युद्ध पर गए अपने मकान मालिक की पत्नी और बच्चों की देखभाल करना ज्यादा ज़रूरी समझा। हरियाणा की इस बेटी ने मानवीय मूल्यों का नया रूप प्रस्तुत किया है। कौन दूसरे देश में रह कर युद्ध में ऐसा सोच सकता है। बहुत हिम्मत और धैर्य का काम है।

वहां के नागरिकों का रूसी सैनिकों को वापस लौट जाने के लिए कहना और एक महिला द्वारा उन्हें सूरजमुखी के बीज देकर यह कहना कि जहां आप शहीद होंगे, वहां पर सूरजमुखी के फूल खिलेंगे, सराहनीय है। यूक्रेन की सेना आपको वापस जाने नहीं देगी। हिमाचल के लगभग सभी छात्र जो यूक्रेन में बैचलर ऑफ मेडिसिन और बैचलर ऑफ सर्जरी की पढ़ाई के लिए गए थे, प्रदेश के मुख्यमंत्री के प्रयासों और विदेश मंत्रालय के निरंतर सहयोग से सकुशल लौट आए हैं। ख़बरों में परिवारजनों की भावुकता से भरी तस्वीरें देखने को मिलीं। उधर यूक्रेन से 368000 लोग अपनी मातृभूमि छोड़ कर पोलैंड और दूसरे पड़ोसी देशों में चले गए। लेकिन एक दिलचस्प बात यह हुई कि यूक्रेन सरकार ने एक आग्रह किया था कि जो लोग मातृभूमि की रक्षा करना चाहते हैं, वे आगे आएं। 22000 लोग यूरोप और दूसरे देशों से लौट कर यूक्रेन आए और अपनी मातृभूमि की रक्षा करने में जुट गए।

किसी भी देश के लिए शायद यह सबसे गौरव का विषय होगा कि उसके नागरिक जो दूसरे देशों में रहते हैं, यद्ध के दिनों में मातृभूमि की रक्षा के लिए लौट आए। मातृभूमि के प्रति प्रेम, लगाव का इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा। युद्ध में शायद किसी की भी जीत नहीं होती। दोनों देशों में जान-माल और बेकसूर लोग मारे जाते हैं। युद्ध में गए सैनिकों का हर रिश्ता प्रभावित होता है। एक मां, एक बहन, पत्नी, भाई, पिता, पुत्र, मित्र, सभी रिश्ते कहीं न कहीं कुछ खो देते हैं। युद्ध के जख्म तो भर जाते हैं, लेकिन निशान नहीं मिटते। युद्ध से मिला दर्द पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। यूक्रेन ने अब तक रूस का डट कर मुकाबला किया है और शायद कुछ दिन और कर पाए। अगर युद्ध जारी रहा तो हो सकता है रूस की सैन्य क्षमता के आगे वे झुक जाएं। इस सबके बावज़ूद यूक्रेन का मनोबल बरकरार है और विश्व के कई देश चाहते हैं कि जल्दी युद्धविराम हो और दोनों देशों के आम नागरिकों को युद्ध द्वारा दी गई पीड़ा से जीवनभर न गुजरना पड़े। बहरहाल शांति स्थापित करने के प्रयास जारी हैं। दोनों देशों में बातचीत चल रही है। युद्धविराम पर दोनों देशों में समझौता हो सकता है। इस वक्त की सबसे बड़ी जरूरत भी यही है कि पूरे विश्व में शांति स्थापित हो और यह युद्ध विश्व युद्ध में परिवर्तित न हो। आशा है दोनों देशों के नेता विश्व शांति का महत्त्व समझेंगे।

 

 

 

 

 

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