भाजपा के दर्जन भर मौजूदा विधायकों को जोर का झटका धीरे से लगा है। उनके टिकट काटे तो नहीं गए मगर फिर भी वो बेटिकट हो गए हैं। ऐसा इसलिए कि उनकी सीट अब भाजपा के सहयोगी दलों के खाते में चली गई है। अभी तक घोषित सीटों के हिसाब से भाजपा के एक दर्जन ऐसे विधायक हैं, जिनकी सीटों पर अब अपना दल और निषाद पार्टी के उम्मीदवार चुनाव मैदान में आ चुके हैं। इसे भाजपा के उस सर्वे से जोड़ कर भी देखा जा रहा है, जिसमें जिताऊ होना ही पहली और आखिरी प्राथमिकता मानी गई है।
यूपी के विधानसभा चुनाव में इस बार भाजपा की दोस्ती अनुप्रिया पटेल के अपना दल (एस) और डा. संजय निषाद की निषाद पार्टी से है। वर्ष 2017 में इस गठबंधन में निषाद पार्टी की जगह ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा थी। तब भाजपा ने अपना दल को 11 और सुभासपा को 8 सीटें दी थीं। बाकी 384 पर भाजपा चुनाव मैदान में थी। भाजपा की 312 मिला कर एनडीए गठबंधन ने 325 सीटों पर शानदार जीत दर्ज की थी। इस बार भाजपा ने घोषित तौर पर अपने सहयोगियों को पहले से ज्यादा सीटें दी हैं। हालांकि चर्चा यह भी है कि सीटों के साथ कई जगह उम्मीदवार भी भगवा कैंप ने ही दे दिए हैं।
निषाद पार्टी ने अभी तक 10 और अपना दल ने 9 प्रत्याशियों का ऐलान किया है। इन 19 सीटों में से 12 सीटें ऐसी हैं, जहां मौजूदा विधायक भाजपा के हैं यानि दर्जनभर विधायकों की सीटें गठबंधन की गांठ में बंधकर पार्टी के दोस्तों के खाते में आ चुकी हैं।
भाजपा की वो जीती सीटें जो अब सहयोगियों के पास
कायमगंज, घाटमपुर, मऊरानीपुर, बिंदकी, बारा, चायल, नानपारा, बछरावां वो सीटें हैं जो भाजपा ने 2017 में जीती थीं। अब इन पर अपना दल (एस) ने प्रत्याशी उतारे हैं। इनमें से बहराइच की नानपारा सीट से भाजपा के टिकट पर जीतने वाली माधुरी वर्मा अब सपा के पाले में हैं जबकि मेंहदावल, सुल्तानपुर सदर (जयसिंहपुर), चौरी-चौरा और कालपी की सीटों पर निषाद पार्टी प्रत्याशी घोषित कर चुकी है।
टिकट की खातिर कइयों ने बदले पाले
गठबंधन में जाने वाली सीटों को देख कर बाकी की सीटों पर भी विधायक चौकन्ने हो गए हैं। जिन्हें सीट जाने की संभावना है, उन्होंने सहयोगी दलों में ही भविष्य खोजना शुरू कर दिया। कई इसमें सफलता भी पा चुके हैं। सैदपुर के विधायक सुभाष पासी बीते दिनों भाजपा में शामिल हुए थे, मगर सीट निषाद पार्टी के कोटे में चली गई। अब वो सैदपुर से ही निषाद पार्टी के उम्मीदवार हैं। मऊरानीपुर सीट से अपना दल की टिकट पाने वाली रश्मि आर्या सपा से भाजपा में शामिल हुई थीं। फिर अपना दल में गईं और टिकट पा गईं। अभी इस फेहरिस्त में कई और नाम शामिल हो सकते हैं।
मेंहदावल सीट भी चर्चा में
संतकबीर नगर की मेंहदावल विधानसभा की चर्चित सीट भी इसमें शामिल हैं जो एक कथित जूता कांड को लेकर चर्चा में आई थी। वर्ष 2017 में राकेश सिंह बघेल भाजपा के टिकट पर विधायक बने थे। उन्होंने बसपा के अनिल कुमार त्रिपाठी को हराया था जो बाद में भाजपा में शामिल हो गए थे। इस बार राकेश भी बेटिकट हो गए हैं। वहां निषाद पार्टी ने अब अनिल कुमार त्रिपाठी को प्रत्याशी बनाया है।
टिकट की खातिर कइयों ने बदले पाले
गठबंधन में जाने वाली सीटों को देख कर बाकी की सीटों पर भी विधायक चौकन्ने हो गए हैं। जिन्हें सीट जाने की संभावना है, उन्होंने सहयोगी दलों में ही भविष्य खोजना शुरू कर दिया। कई इसमें सफलता भी पा चुके हैं। सैदपुर के विधायक सुभाष पासी बीते दिनों भाजपा में शामिल हुए थे, मगर सीट निषाद पार्टी के कोटे में चली गई। अब वो सैदपुर से ही निषाद पार्टी के उम्मीदवार हैं। मऊरानीपुर सीट से अपना दल की टिकट पाने वाली रश्मि आर्या सपा से भाजपा में शामिल हुई थीं। फिर अपना दल में गईं और टिकट पा गईं। अभी इस फेहरिस्त में कई और नाम शामिल हो सकते हैं।
मेंहदावल सीट भी चर्चा में
संतकबीर नगर की मेंहदावल विधानसभा की चर्चित सीट भी इसमें शामिल हैं जो एक कथित जूता कांड को लेकर चर्चा में आई थी। वर्ष 2017 में राकेश सिंह बघेल भाजपा के टिकट पर विधायक बने थे। उन्होंने बसपा के अनिल कुमार त्रिपाठी को हराया था जो बाद में भाजपा में शामिल हो गए थे। इस बार राकेश भी बेटिकट हो गए हैं। वहां निषाद पार्टी ने अब अनिल कुमार त्रिपाठी को प्रत्याशी बनाया है।