उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने मंगलवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को पत्र लिखकर यह जानकारी दी। बता दें कि वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव से पहले स्वामी प्रसाद मौर्य बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का साथ छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हुए थे और अब उन्होंने भाजपा छोड़ सपा का हाथ थाम लिया। आइए जानते हैं कैसा रहा उनका राजनीतिक सफर।
प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में जन्मे मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से लॉ में स्नातक और एमए की डिग्री की हासिल की है। 1980 में उन्होंने राजनीति में सक्रिय रूप से कदम रखा। वह इलाहाबाद युवा लोकदल की प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य बने और जून 1981 से सन 1989 तक महामंत्री पद पर रहे। इसके बाद 1989 से सन 1991 तक यूपी लोकदल के मुख्य सचिव रहे। मौर्य 1991 से 1995 तक उत्तर प्रदेश जनता दल के महासचिव पद पर रहे।
1996 को स्वामी प्रसाद मौर्य ने बसपा की सदस्यता ली और प्रदेश महासचिव बने। इसके बाद उन्होंने बसपा के टिकट पर डलमऊ, रायबरेली से विधानसभा सदस्य बने और चार बार विधायक बने। मंत्री ने 2009 में पडरौना विधानसभा उपचुनाव जीता और केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह की मां को हराया। मई 2002 से अगस्त 2003 तक उन्हें मंत्री का दर्जा मिला और अगस्त 2003 से सितंबर 2003 तक नेता प्रतिपक्ष भी रहे।
स्वामी प्रसाद मौर्य वर्ष 2007 से 2009 तक मंत्री रहे। जनवरी 2008 में उन्हें बसपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। 2012 में मिली हार के बाद मायावती ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर नेता प्रतिपक्ष बनाया और उनकी जगह रामअचल राजभर को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। इसके बाद 2016 में उन्होंने बसपा से बगावत करके भाजपा का हाथ थाम लिया था।
मंत्री ने इस्तीफा पत्र क्या लिखा
मंत्री ने उपराज्यपाल को लिखे अपने इस्तीफा पत्र में लिखा कि महोदय, माननीय मुख्यमंत्री योगी आदत्यिनाथ जी के मंत्रिमंडल में श्रम एवं सेवायोजन एवं समन्वय मंत्री के रूप में विपरीत परिस्थितियों और विचारधारा में रहकर भी बहुत ही मनोयोग के साथ उत्तरदायित्व का निर्वाहन किया है किंतु दलितों, पिछड़ों, किसानों बेरोजगार नौजवानों एवं छोटे-लघु एवं मध्यम श्रेणी के व्यापारियों की घोर उपेक्षात्मक रवैये के कारण उत्तर प्रदेश के मंत्रिमंडल से मैं इस्तीफा देता हूं।